2050 तक भारत में 34 करोड़ सीनियर सिटीजन होंगे आज ही वृद्धजन उपेक्षा का शिकार हैं तब क्या होगा?
औपचारिकता निभाते हुए विदेश से दो-तीन साल में एक बार आकर बड़े-बड़े तोहफ़े देकर माता-पिता को खुश करके फिर चले जाते हैं.या फिर कुछ धनराशि भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं. माता पिता के मरने के बाद संपत्ति बेचकर चले जाते हैं.कई घर इस कारण महीनों से बंद है. वहां कोई नहीं रहता.

34 करोड़ सीनियर सिटीजन तब की आबादी के अनुमान का 17 प्रतिशत होगा.इतनी बड़ी संख्या में बुजुर्गों की आबादी की देखभाल करना निश्चित रूप से एक चुनौती भरा काम होगा.
यह तब ज़ब कि युवा आबादी या तो अपने माता-पिता को छोड़कर विदेश में माइग्रेट हो गई होगी या अन्य बड़े शहर में जाकर नौकरी धंधा कर रही होगी.आज की स्थिति में हमारे उज्जैन शहर से ही हजारों की तादाद में बच्चे पुणे, मुंबई दिल्ली,कोलकाता , हैदराबाद,बेंगलुरु ही नहीं बल्कि अमेरिका,कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके में जाकर आईटी सेक्टर की नौकरियां कर रहे हैं.
उज्जैन के कई पाश कॉलोनी का सर्वे करेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश घरो में सिंगल पेरेंट्स वृद्धावस्था के कष्ट भोग रहे हैं. उनके पास ना तो बेटे बेटियां हैं ना ही कोई परिजन.घर में दो बच्चे थे जिनमें से दोनों ही या तो बाहर है या अन्य शहरों में रहकर नौकरी कर रहे हैं.माता-पिता के पास रहने के लिए उनके पास बिल्कुल समय नहीं है.साथ ही दिल्ली मुंबई कोलकाता में इतने बड़े घर नहीं हैं कि अपने माता-पिता को साथ रख सके. ढाई कमरों के 600 वर्गफुट के फ्लैट में रह रहे इन युवा लोगों के ना तो प्लेट में ही जगह है न ही दिल में ,अपने पेरेंट्स के लिए .
औपचारिकता निभाते हुए विदेश से दो-तीन साल में एक बार आकर बड़े-बड़े तोहफ़े देकर माता-पिता को खुश करके फिर चले जाते हैं.या फिर कुछ धनराशि भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं. माता पिता के मरने के बाद संपत्ति बेचकर चले जाते हैं.कई घर इस कारण महीनों से बंद है. वहां कोई नहीं रहता.
भारतीय संस्कृति में मातृ देवो, पितृ देवो भव का भाव है और सदैव बुजुर्गों का आदर करते हुए उनकी वृद्धा अवस्था में सेवा करने का मार्ग दिखाया गया है. अभी भी कुछ घरो में इसका पालन हो रहा है लेकिन ज्यादातर बुजुर्ग उपेक्षा का शिकार है .शहर को छोड़ दे तो ग्रामीण क्षेत्र में देखा गया है कि जब भी जमीन -जायदात का प्रश्न आया, माता-पिता ने बटवारा कर दिया.बाद के समय में वे पाई -पाई के लिए तरसते हैं. कई बार कलेक्टर के आगे जनसुनवाई में बुजुर्गो को सहायता की गुहार लगाते देखा जा सकता है .वे यह कहते हैं कि उनकी संपत्ति बेटों ने ले ली और उन्हें घर से निकाल दिया. बुजुर्गों को अतिशय प्रेम न दिखाते हुए अपनी मुट्ठी में कुछ रखना चाहिए जिससे वृद्धावस्था में अपना उपचार व भोजन की व्यवस्था हो सके.
दूसरी ओर सरकार ने अपनी तरफ से किसी तरह का इस मामले में विचार नहीं किया हैं. जिस तरह विदेशों में बुजुर्गों की के खान-पान और उपचार की जिम्मेदारी सरकार के ऊपर होती है वैसी कुछ हमारे यहॉं नहीं है.हालांकि अभी केंद्र सरकार ने आयुष्मान योजना में 70 से ऊपर के लोगों को शामिल किया गया है. लेकिन देश का स्वास्थ्य ढांचा ऐसा नहीं है की सभी को स्वास्थ्य आसानी से सुलभ हो सके.
सरकारी स्तर पर चलने वाले वृद्ध आश्रम नहीं के बराबर हैं. अन्य आश्रमों की स्थिति की बहुत बुरी है यहां आकर नारकीय जीवन जीना होता है. इस दिशा में गहन चिंतन -मनन की आवश्यकता है. सरकारों को इसके लिए प्रथक से टैक्स लगाकर एक कोष बनाना चाहिए जिससे वे आने वाले समय में बड़े-बड़े वृद्ध आश्रमों को बनाकर बुजुर्गों के लिए सम्मानजनक जीवन की व्यवस्था कर सके. निजी क्षेत्र में भी इस तरह के बड़े-बड़े वेंचर स्थापित करने की आवश्यकता है, जिससे जो सक्षम बुजुर्ग है वह शुल्क चुकाकर रह सके और अकेलापन न भोगे.
इस सिलसिले में एक उदाहरण सारी स्थिति स्पष्ट कर देगा.शहर का एक चिकित्सक दंपति रिटायरमेंट के बाद पाश कॉलोनी में अपना जीवन यापन कर रहा था कि पत्नी की याददाश्त चली गई.पति ने जैसे तैसे करके 5 - 10 साल पत्नी को संभाला. लेकिन एक दिन पति हार्ट अटैक से स्वर्ग सिधार गए. इन दोनों ने अपने बच्चों पर बड़ा निवेश किया था .जिससे लड़का भारत के बड़े शहर में ओर लड़की अमेरिका में अच्छी नौकरी कर रही है. पिता की मृत्यु की खबर लगते ही दोनों बच्चे आए हैं उनका अंतिम संस्कार किया और संपत्ति के बटवारे के बाद मां के बारे में विचार हुआ. बेटे की बहू ने कहा कि हमारे फ्लैट में इतनी जगह नहीं है की मां को संभाला जाए दोनों नौकरी करते हैं. अमेरिका में रहने वाली लड़की ने भी माँ को ले जाने से इनकार कर दिया. दोनों बच्चों ने कहीं से केयरटेकर ढूंढा और उसको घर में रखकर चले गए.हर महीने पैसा भेजते हैं और मां के मरने का इंतजार कर रहे हैं .ताकि जैसे ही उनकी मृत्यु हो आकर मकान बेचकर पैसे का बंटवारा कर ले. यह मार्मिक कटु सत्य आज का है.
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