जन्म के बाद ही निर्णय होता है अगड़ा है या पिछड़ा Is Narendra modi not backword by birth
Rahul Gandhi ने मोदी के जन्म से पिछड़ा न होने पर प्रश्न उठाकर नया विवाद खड़ा कर दिया है , क्या है मामला पढ़िए ...

Genral Election - 2024 आ रहे हैं . Forward - Bacword की राजनीति जोरों पर है .चुनाव में पिछड़ता देख कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं .वे यात्रा को सुर्खियों में बनाये रखने के भी हर उपाय कर रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण व रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा आगे चल रही है । राहुल गांधी चाह रहे हैं कि किसी तरह कांग्रेस अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाये , आज वह जीत की स्थिति में तो नहीं है लेकिन दक्षिण में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में सरकार बनाकर जीवित अवश्य है ।
राहुल गांधी अपने अजीबोगरीब , अटपटे बयानों को लेकर हमेशा चर्चा में रहे हैं .अव्वल तो Bharat Jodo यात्रा अपने नाम से ही अटपटी लगती है. भारत तो पहले ही जुड़ा हुआ है अब क्या जोड़ना है यह स्पष्ट नहीं है। बहरहाल यदि वे मतदाताओं को कांग्रेस से जोड़ने निकले हैं तो उन्हें इस तरह के बयानों से बचना होगा ।
राहुल गांधी का मासूमियत से यह कहना कि मोदी जन्म से पिछडे नहीं है ,यह भी कहीं विरोधाभास उत्पन्न करता है. जन्म से कोई पिछड़ा नहीं होता है .व्यक्ति का जन्म पिछड़े वर्ग में होता है। व्यक्ति अगड़ा है या पिछड़ा बने यह भी उसके हाथ में नहीं है .अगडे- पिछड़े का निराकरण तो संवैधानिक व्यवस्था के तहत पिछड़ा वर्ग आयोग ही कर सकता है।
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि पिछड़ा वर्ग की परिभाषा के बारे में वर्षों चिंतन हुआ और 1990 के बाद जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की गई तब उसे रिपोर्ट के आधार पर ही पिछड़ा वर्ग परिभाषित किया गया और यह तय किया गया कि कौन-कौन सी जातियां पिछडा वर्ग में शामिल होगी।
बाद में पिछडा वर्ग में कई ऐसी जातियां शामिल हो गई है जो वस्तुतः शैक्षणिक रूप से पिछडी अवश्य हो सकती है लेकिन आर्थिक रूप से उनका आधार मजबूत है। यही वह पिछड़ी जातियां है जो अति पिछड़ी जातियों के हक को मार कर आरक्षण का लाभ ले रही है । जातिगत समीकरणों के बिगड़ने से बचने के लिए ना तो कोई सरकार न ही आयोग इस बर्र के छत्ते में हाथ डालना चाहता है. जो चल रहा है सो चलने दो इस नीति पर काम हो रहा है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में अति पिछडी जातियों के लिए कोटा तय करने के प्रयास जरूर किये है ।
बहरहाल लोकसभा चुनाव 2024 में है और चुनाव में पिछड़े वर्ग की राजनीति फिर से हावी होती दिख रही है। यहां तक की राज्यों में मुख्यमंत्री के चयन में भी इसी मापदंड को ध्यान में रखकर काम किया जा रहा है।
चूँकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछड़े वर्ग से आते हैं और पिछड़े वर्ग का कार्ड विपक्ष भाजपा के साथ खेल नहीं सकता .इसलिए खीज में इस तरह के अनर्गल आरोप लगाये जा रहे हैं। देखा जाए तो नरेंद्र मोदी न तो पिछड़ों के नेता हैं ना अगड़ों के वे समग्र रूप से भारत के एकमेव नेता के रूप में स्थापित हुए हैं. इसको भी जात-पात ,अगड़ा –पिछडा में बाँट कर यदि विपक्षी देखते हैं तो भी नरेंद्र मोदी पिछड़े चश्मे से पिछड़े नजर आते हैं .बस यही पेच है इसीलिए नये नये तीर चलाये जा रहे है . पर लगता नहीं कि इस बार भी विपक्ष इस तरह की जात- पात की बात कर राजनीतिक हित साधने में कामयाब होगा।
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Fact check
29 जनवरी 1953 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत पहला पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया गया, काका कालेकर की अध्यक्षता में.
प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिश 7 अगस्त 1990 को लागू की.
वर्तमान में केंद्र राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की ओबीसी लिस्ट में कुल 2650 अलग-अलग जातियों के नाम शामिल है.
जेएनयू के प्रोफेसर के मुताबिक 1994 में मोदी सरनेम वाले mogh ghanchi समुदाय को गुजरात में ओबीसी का दर्जा मिल चुका था ।
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