कबीर या तो वंचित तबके में लोकप्रिय है या उन्हें उच्चवर्ग समझता है मध्यवर्ग की कबीर से कम पहचान है - मालवा के कबीर गायक रामचन्द्र गांगोलिया
उज्जैन निवासी रामचंद्र गांगोलिया बिना किसी बड़े तामझाम के तानपुरे ( तंबूरे ) ,हारमोनियम व खड़ताल बजा कर कबीर के भजनों को गाकर समां बांध देते हैं. मालवा के ग्रामीण अंचलों में कबीर रचा बसा है ।इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि लोक परंपरा में कबीर जीवित हैं और कबीर की साखीयों का अर्थ यहां मालवा क्षेत्र में सरल लोक भाषा में प्रचलित है । कबीर के कहे को कम पढ़े लिखे लोग न केवल समझते हैं बल्कि अपने जीवन में सुधार लाने का एक जरिया बनाते हैं ।

कबीर या तो वंचित तबके में लोकप्रिय है या उन्हें उच्चवर्ग समझता है
मध्यवर्ग की कबीर से कम पहचान है
- मालवा के कबीर गायक रामचन्द्र गांगोलिया
कबीर Kabir की वाणी में करुणा है , पीड़ा है और सामाजिक रूढ़ियों पर करारी चोट है । कबीर को या तो वंचित वर्ग द्वारा अपनाया गया है या बहुत ही उच्च वर्ग द्वारा समझा जाता है । मध्य वर्ग कबीर के बारे में उतना नही समझता है ना ही जानना चाहता है । कबीर ने वंचित वर्ग में जन्म ले कर बड़ी-बड़ी रूढ़ियों पर चोट की । शायद इसी कारण वे गरीब की वाणी है उन्ही में अधिक लोकप्रिय है। यह बात मालवा के प्रसिद्ध कबीर गायक रामचंद्र गांगुलीया ने एक चर्चा में कही। उज्जैन निवासी रामचंद्र गांगोलिया बिना किसी बड़े तामझाम के तानपुरे ( तंबूरे ) ,हारमोनियम व खड़ताल बजा कर कबीर के भजनों को गाकर समां बांध देते हैं।
मालवा के ग्रामीण अंचलों में कबीर रचा बसा है । इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि लोक परंपरा में कबीर जीवित हैं और कबीर की साखीयों का अर्थ यहां मालवा क्षेत्र में सरल लोक भाषा में प्रचलित है । कबीर के कहे को कम पढ़े लिखे लोग न केवल समझते हैं बल्कि अपने जीवन में सुधार लाने का एक जरिया बनाते हैं । कबीर गायन उन्होंने कहां से सीखा इस पर उनका कहना है कि उनकी पहली गुरु उनकी पत्नी Suman रही। क्योंकि उनके ससुर कबीर गायन करते थे और उन्हीं के पास बैठ बैठ कर उनकी पत्नी स्वतः सीख गई। पत्नी के पिताजी जब-जब घर आते थे रामचंद्र को बिठाकर कबीर भजन सीखाते थे और गाने की प्रैक्टिस करवाते थे। धीरे-धीरे उनके मन में कबीर घर कर गए और पत्नी के साथ साइकिल पर बैठकर में गांव -गांव जाकर कबीर के भजनों को गाने लगे।
कबीर की गूढ़ साखीयों Sakhiyan का अर्थ ग्रामीण लोग कैसे समझते हैं यह पूछने पर उनका कहना है कि मालवांचल में सरल भाषा में ज्ञान की बातें कबीर की देन है। बात दिल से निकलती है और सीधे दिल पर चोट करती है । उन्होंने कहा कि कबीर के भजनों को विश्व स्तर पर लोकप्रिय करने में मालवा के पद्मश्री गायक प्रहलाद टिपानिया Prahlad tipanya का बड़ा हाथ है। उनके भजन जरा हल्के गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले आज हिंदुस्तान ही नही बल्कि विश्व में सुना जा रहा है।
रामचंद्र गांगोलिया भजन गायन की लोक परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने बच्चों को भी कबीर गायन में दीक्षित कर रहे हैं । वे अपनी पत्नी व बच्चों के साथ संपूर्ण भारत में कबीर गायन के कार्यक्रम देते आ रहे हैं । उनके प्रिय भजन के बारे में पूछने पर रहते हैं कि यूं तो कबीर के सभी भजन बहुत अच्छे हैं लेकिन
थारे चिड़िया चुग गई खेत रे नर अब तो चैत रे , नर नुगरा रे अब तो मन में चैत रे सबसे प्रिय भजनों में से एक है।
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