पहली बार MP में जिलों व तहसीलों की संख्या कम करने की बात सामने आई
नये सिरे से सीमांकन के लिए एक सदस्यीय आयोग गठित

MP राज्य सरकार ने पहली बार जिलों ,संभागों और तहसीलों की सीमाओं को लेकर सीमांकन के लिए एक नया आयोग गठित किया है .जिसका अध्यक्ष सेवानिवृत आईएएस अधिकारी मनोज श्रीवास्तव को बनाया गया है .
पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया है कि कई जिले ऐसे बन गए हैं जिनकी कोई उपयोगिता नहीं है जिम पांढुर्णा का नाम लिया गया है.मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव अपनी स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं .
उसके बाद तो लगभग प्रदेश के हर कोने से नए जिले गठन की मांग उठने लगी . इस मांग को राजनीतिक रूप से पूरा किया जाने लगा.
वैसे घोषणा तो इस क्षेत्र में नागदा और गरोठ को भी जिला बनाने की हुई थी .लेकिन इनके बनने में भी बड़ी बाधा राजनीति ही रही है.
नागदा अब शायद ही जिला बन पाए
नागदा को जिला बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी 2023 के विधानसभा निर्वाचन के ठीक पहले .तत्कालीन मुख्यमंत्री की शिवराज सिंह चौहान ने जिला बनाने की घोषणा की थी .
लेकिन उसके बाद खाचरोद का विवाद और महिदपुर किस जिले में शामिल हो इस पर भी बहस हुई और जिला बनने का नोटिफिकेशन जारी होने से रुक गया. अब सरकार ने जिलों की सीमाओं के बारे में पुनर्विचार करना शुरू किया है तो शायद ही उज्जैन से 55 किलोमीटर दूर कोई नया जिला बन पाए.
जिले बनने से क्या लाभ- हानि
आमतौर पर जिला बनाने की मांग करने के पीछे उद्देश्य रहता है कि व्यापारी एवं किसी भी किसान को कोर्ट कचहरी के काम से लंबी यात्रा न करना पड़े और प्रशासनिक कसावट बनी रहे .
एक नगर पालिका मुख्यालय वाली तहसील अचानक जिला घोषित हो गई. .तीन चार साल बाद वहां के रहवासियों से चर्चा की कि जिला बनने से क्या लाभ हुए है .
वे बोले जिला बनने के लाभ तो अपनी जगह है लेकिन अब रिश्वत के दाम दुगने हो गए है .पहले निचले स्तर के अधिकारी दो – पांच सौ में काम कर दिया करते थे और अब इसमें जिलाधिकारी का हिस्सा भी जुड़ गया है और छोटे-छोटे से कामों के लिए बड़ी धनराशि देना पड़ती है.
उपहास में कही गई बात में कुछ सच्चाई जरुर होगी .नये जिले और राज्य बनने की कीमत अंततः आम नागरिक को ही चुकाना पड़ती है.
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