16 दिसंबर को हम 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय को विजय दिवस , के रूप में मनाते आ रहे हैं । विजय दिवस के नायकों के रूप में हम राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व सेना के शौर्य व कौशल को याद करते हुए जनरल सैम मानेकशॉ को याद करते हैं. उनकी रणनीति व सेवा के पराक्रम के चलते हैं ही भारत ने यह युद्ध मात्र 14 दिनों में जीत लिया था.
बताया जाता है कि जब भारत में तब के पूर्वी पाकिस्तान और वर्तमान के बांग्लादेश से पाकिस्तान की सेना के अत्याचार से परेशान होकर बांग्लादेशी शरणार्थी असम और बंगाल में घुसपैठ करने लगे व शरणार्थियों की संख्या लाखों में पहुंच गई तो इंदिरा गांधी ने राजनीतिक रूप से समस्या का हल करने के लिए अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों की यात्रा की । अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और अन्य राष्टध्यक्षो से किसी भी तरह की सहायता और आश्वासन नहीं मिला . अंतत उन्होंने सैन्य कार्रवाई को करने का निर्णय लिया और जनरल मानेकशा को अपने कक्ष में बुलाया । यह घटना होगी कोई मई जून के आसपास की । उन्होंने कहा " जनरल क्या तुम पाकिस्तान पर हमला कर सकते हो " जनरल ने पूछा " कब मैडम " तो इंदिरा गांधी ने कहा कि बस अभी.
जनरल मानेकशॉ इसके लिए कतई तैयार नहीं हुए । उन्होंने अपने प्रधानमंत्री के आदेश को मानने से इनकार करते हुए कहा कि हम अभी हमला करने की स्थिति में नहीं है। ना तो हमारा सैन्य साजो - सामान तैयार है न हीअग्रिम मोर्चो पर सेना की तैनाती हुई है। बारिश निकट है और ऐसे में हमें हार का मुंह देखना पड़ सकता है । जनरल ने नवंबर माह में हमला करने के लिए चार-पांच महीने का समय मांगा.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने जनरल की बात से हतप्रभ रह गई । एक सेनापति अपने प्रधानमंत्री का आदेश मानने से इनकार कर रहा था । स्थिति को भांपते हुए जनरल मानेकशा ने प्रधानमंत्री से कहा कि मैडम यदि मेरी बात आपको बुरी लगती है तो मैं अपना स्तीफा दे देता हूं । किसी अन्य व्यक्ति को सेनापति नियुक्त करके युद्ध छेड़ दीजिए .
कुछ देर में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहज हुई और उन्होंने कहा ठीक है तैयारी करो. जनरल मानेकशा का विचार था कि जून जुलाई में होने वाली बारिश के कारण भारतीय सेना को पूर्वी मोर्चे पर अत्यधिक परेशानी का सामना करना पड़ेगा । मानेकशॉ को समय मिला और वे पुख्ता तैयारी और रणनीति के साथ नवंबर 1971 में युद्ध में उतर गए. मात्र 14 दिनों के युद्ध में ही पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए।पूर्वी पाकिस्तान यानी कि आज के बंग्लादेश के तब के पाकिस्तानी जनरल नियाजी को भारतीय सेना के सामने अपमानजनक आत्मसमर्पण करना पड़ा .
जनरल मानेकशा 1947 के कुछ पूर्व अंग्रेज सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट से भर्ती हुए थे और पदोन्नत होकर स्वतंत्र भारत में सेनाअध्यक्ष के पद पर पहुंचे। उनकी वीरता , सैनिकों से उनका सामंजस और दोस्ताना व्यवहार सैनिकों को भरोसा दिलाने में कामयाब हुआ और यह भारत के लिए एक अमूल्य जीत लेकर आया.
कम ही लोग जानते हैं कि जनरल मानेकशॉ पारसी समुदाय से और पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के काम को पूरा करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल और तब के मेजर जनरल जे ऍफ़ जेकब इजराइल के एक यहूदी थे ।
यहूदी सैन्य अधिकारी ने नियाजी को किस तरह से माइंड गेम में हराकर हथियार डालने के लिए मजबूर कर दिया यह एक अलग रोचक कहानी है । जबकि स्थित यह थी कि भारतीय सेना के पास समर्पण वाले दिन ना तो पर्याप्त संख्या में सैन्य बल था ना ही गोल बारूद । पाकिस्तान की सेना की पास बड़ी संख्या में सैनिक थे । हताश निराश पाक जनरल नियाजी भारतीय सैन्य अधिकारी के जाल में फंस गए और जान की रक्षा के लिए 93 हजार सैनिकों के साथ उन्होंने हथियार डाल दिए । 16 दिसंबर 1971 की यह जीत भारतीय मानस पर चीन के साथ हुई अपमानजनक हार के घाव पर मरहम लगा गई। इंदिरा गांधी के साथ-साथ जनरल मानेकशॉ को भारतीय इतिहास में अमर कर दिया । विजय दिवस पर सभी भारतीयों को गर्व करना चाहिए ।