आधुनिक भारतीय इतिहास में गौरव के क्षण
गौरव के क्षणों को याद करें तो 1971 की लड़ाई में बांग्लादेश के बनने , 2014 के बाद सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट, ऑपरेशन सिन्दूर पर हमें गर्व करने के कुल जमा चार अवसर ही मिलते हैं

आधुनिक भारतीय इतिहास में गौरव के क्षणों को याद करें तो 1971 की लड़ाई में बांग्लादेश के बनने , 2014 के बाद सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट, ऑपरेशन सिन्दूर पर हमें गर्व करने के कुल जमा चार अवसर ही मिलते हैं । आज भी मन में आता है कि क्या सनातन धर्म आत्म रक्षा में दुश्मन को मिटाने की बजाय उसको माफ करने के निर्देश देता है या हमने अपनी ओर से अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए इस तरह की व्याख्या गढ़ ली ।
प्रश्न हिंदू धर्म और सनातन परंपरा के निर्वहन का है . जिसमें दुश्मन को भी माफ करने की बात कही गई है . मई को पृथ्वीराज चौहान का जन्म दिन था. वे चाहते तो आसानी से मोहम्मद गोरी को माफ़ न करते हुए मार डालते . शायद यह कड़ा निर्णय लिया होता तो आने वाले समय का भारत का इतिहास कुछ और ही होता.
काफिरों को सबक सिखाने का उपक्रम तो 1001 से हो रहा है
मध्यकाल की शुरुआत के समय में भारतीय इतिहास को बदलने वाली दो घटनाएं हुई .दोनों घटनाओं के बीच लगभग 91 वर्षों का अंतर रहा लेकिन दोनों ही घटना की एक ही थीम थी . धन की लूट और काफिरों को सबक सिखाना . यहां हम बात कर रहे हैं सन 1001 में अफगानिस्तान के गाँव गजनी से निकलकर आने वाले महमूद गजनवी नाम के एक तुर्क की . जिसका उधेश्य भारत में साम्राज्य स्थापित करना नहीं था वरन यहां के सनातनी हिंदू राजाओं को सबक सिखाते हुए लूटमार करने का था।
मध्यकाल के इतिहासकारों ने सन 1001 ईस्वी से लेकर उसके 17 हमलो के राजाओं से उसका युद्ध का कोई विस्तार से विवरण नहीं दिया है . कोई भी राजा इतिहास प्रसिद्द नहीं था . भारतीय राजाओं के महमूद गजनवी से हारने के कारण की समीक्षा करते हुए बताया गया है कि यहां के राजा घोड़े की काठी के दोनों ओर रस्सी में गठान लगाकर उस पर खड़े हो कर तलवार से युद्ध करते थे . महमूद गजनी एक नवीन अविष्कार लोहे की रकाब के साथ आया .उसने काठी के दोनों और रस्सी में रकाब लगा दिए जिन पर खड़े होकर उसके सैनिक अधिक कुशलता से तलवारबाजी कर लड़े और जीते. इतने छोटे से आविष्कार ने हिंदुस्तान को हरा दिया , गुलामी की ओर धकेल दिया .
अब आते हैं 1190 से लेकर 1191 के तराइन युद्ध व मोहम्मद गौरी की दूसरी घटना पर . गौरी भी अफगानिस्तान घोर से यहां आया . यहां पर उसके लिए सबसे बड़ी बाधा खड़ी की अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने . पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को 6 बार हराया . हर बार हिंदू और सनातनी परम्परा - दया , करुणा ,क्षमा का पालन करते हुए अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को माफ कर दिया, जिंदा छोड़ दिया .अंतिम बार इतिहास के धोखेबाज जयचंद की मदद से पृथ्वीराज चौहान परास्त हुआ. मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को मौका नहीं दिया .वह उन्हें पड़कर गोरी ले गया और वहां उनकी हत्या कर दी गई. पृथ्वीराज रासो नामक काव्य लिखने वाले चंदवरदाई ने समूचे घटनाक्रम का बहुत ही रोचक ढंग से विवरण प्रस्तुत किया है कि किस तरह गोरी की भी मौत नेत्रहीन कर दिए गए पृथ्वीराज चौहान के हाथों तीर लगने से हुई .
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