सार्वजनिक परिवहन का बिदा हो जाना दुखद है
पेट्रोल के बढ़ते दाम और सार्वजनिक परिवहन का हमारे समाज से विदा हो जाना मध्य प्रदेश के संदर्भ में निश्चित रूप से दुखदाई है

सार्वजनिक परिवहन का बिदा हो जाना दुखद है
मध्य प्रदेश में सार्वजनिक परिवहन पूर्ण रूप से निजी हाथों में चला गया है .सरकार की इसमें नाम मात्र की भी भागीदारी नहीं बची है . कहने को तो विभिन्न शहरों की सूत्र सेवाएं चल रही है लेकिन वे भी नहीं के बराबर है. दूसरी ओर महाराष्ट्र , राजस्थान , उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , हिमाचल , बंगाल सहित अनेक प्रदेशों में स्टेट रोडवेज का संचालन अभी भी जारी है .
महंगे पेट्रोल की मार और सामाजिकता निभाने के बीच में हमारा ग्रामीण अंचल का समाज पीस रहा है .पहले तो महंगी मोटरसाइकिल खरीदना उसकी किस्त जमा करना और उसके बाद उसमें उतना ही महंगा पेट्रोल डाल कर यहां -वहां आना -जाना निश्चित रूप से किसानों की आमदनी पर भारी पड़ रहा है.
पहले रोडवेज की बसें जिनका किराया अफॉर्डेबल हुआ करता था आने -जाने का प्रमुख साधन हुआ करती थी ,लेकिन जब से गांव में मोटरसाइकिल का बाजार पहुंचा है लोगों के लिए मोटरसाइकिल खरीदना और उस पर जान जोखिम में डालकर सवारी करना अनिवार्यता ही नहीं मजबूरी बन चुका है .कुछ संपन्न किसान अपने घरों में चार पहिया वाहन रख रहे हैं लेकिन वहां भी पेट्रोल तो भरवाना ही पड़ता है .चार पहिया वाहन जहां सामाजिक स्टेटस को बढ़ाता है वही मालिक की जेब भी काटता है.
सस्ते परिवहन के रूप में इलेक्ट्रिक बाईक्स, स्कूटी , कारों का प्रादुर्भाव पिछले एक साल में हुआ है लेकिन इनकी आसमान छूती कीमतें व चार्जिंग के व्यापक प्रबंध नहीं होने के कारण यह उतनी आकर्षित नहीं लग रही है . इलेक्ट्रिक स्कूटी शहरी क्षेत्र में जरूर लोकप्रिय है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के परिवहन में यह कहीं नहीं ठहरती है. कई बार भूतल परिवहन मंत्रालय से इस मामले में बयान बाजी हो चुकी है कि चार्जिंग स्टेशन खड़े करेंगे , नया इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा होगा लेकिन हाल फिलहाल तो स्थिति नगण्य है.
इलेक्ट्रिक बाइक और स्कूटर की कीमत डेढ़ लाख से काम नहीं पड़ती है और इसकी रेंज भी कहने को तो सौ से सवा सौ किलोमीटर बताई जाती है लेकिन 75 किलोमीटर के बाद पूरी क्षमता से काम नहीं करती है. 5 साल बाद बैटरी बदलवाने का झंझट अलग ही सामने आकर खड़ा हो जाएगा. इन सब के चलते हैं व्यापक पैमाने पर पेट्रोल बचाने एवं विदेशी मुद्रा बचाने का सरकार का अभियान आधे -अधूरे मन से किया गया प्रतीत होता है
पूर्व परिवहन मंत्री रहे नितिन गडकरी प्रिंट मीडिया और टीवी पर आने वाले टॉक शो में जिस शिद्दत के साथ में देश को एनर्जी एफिशिएंट और एनर्जी इंडिपेंडेंस बनाने की बाते करते रहे हैं . इलेक्ट्रिक बाईक्स व चोपहिया वाहनों में एथेनॉल का उपयोग करके विदेशी मुद्रा कैसे बचाई जाए इस पर उनका फोकस रहा है . लेकिन जितनी भी बातें कही जाती है धरातल पर वह उस मात्रा में कहीं दिखाई नहीं पड़ती है. इन सब कामों में शासन -प्रशासन को किस तरह से काम करने में कठिनाई आती होगी यह इसी बात से समझा जा सकता है कि एक केंद्रीय मंत्री भी पूरी ताकत के साथ योजना लागू करवा नहीं पाया . देश में लिथियम आयन बैट्री से सुसज्जित वाहनों का भविष्य आने वाले समय में क्या होगा यह अब नई सरकार और उसके परिवहन मंत्री तय करेंगे .
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