फिल्म बागबान से बुजुर्गों को क्या सबक लेना चाहिए
घर- घर में बुजुर्ग रामायण सीरियल की तरह बागबान फिल्म देखकर अपना समय काटते हैं और बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को लेकर उनके दुख में शामिल होते हैं.

आए दिन खबरें आती है कि बुजुर्गों ने जैसे ही अपनी जमीन- घर बेटों के नाम किया उन्हें घर से निकाल दिया गया . या घर से निकलने के लिए मजबूर करने के लिए षड्यंत्र चालू हो गए.
2003 में रवि चोपड़ा ने एक फिल्म बनाई थी बागबान जिसमें अमिताभ बच्चन ,हेमा मालिनी ,परेश रावल ,सलमान खान , असरानी और कई कलाकार शामिल थे. घर- घर में बुजुर्ग रामायण सीरियल की तरह बागबान फिल्म देखकर अपना समय काटते हैं और बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को लेकर उनके दुख में शामिल होते हैं.
अलग-अलग रहने के दौरान कुछ ही दिनों में दोनों का उत्पीड़न शुरू हो जाता है .बेटों की पत्नियां उनका निरादर करती है. इस बीच अमिताभ बच्चन की एक रेस्टोरेंट चलाने वाले परेश रावल और उनकी पत्नी से मित्रता हो जाती है .वे वहां जाकर कुछ एकाउंट्स का छोटा-मोटा कामकाज करने लगते हैं.
बुढ़ापे में पति पत्नी के अलग-अलग रहने की मजबूरी और उससे दुख का विवरण और अपनी जीवन गाथा टाइप करके एक उपन्यास बागबान नाम से अमिताभ बच्चन लिख देते हैं.
परेशान हो कर एक दिन फोन पर अमिताभ और हेमा मालिनी दोनों तय करते हैं कि अब और बच्चों के पास नहीं रहेंगे जो भी होगा वह भुगत लेंगे. चुपचाप दोनों घर से निकल कर एक जगह पर मिलते हैं और अपने पुराने मकान मालिक के पास चले जाते हैं.
अमिताभ बच्चन का लिखा हुआ उपन्यास परेश रावल किसी प्रकाशक को भेज देते हैं जहां वह प्रकाशित हो जाता है .देखते ही देखते अमिताभ प्रसिद्ध हो जाते हैं. उन्हें करोड़ों की रॉयल्टी मिलने की बात सुनकर चारों बच्चे फिर मां-बाप के पास माफी मांगने जाते हैं .लेकिन इस बार उन्हें माफी नहीं मिलती है बस इसी नोड पर फिल्म समाप्त हो जाती है.
आज से कोई 20 साल पहले आई फिल्म सबक देती है कि बुढ़ापे के लिए हर व्यक्ति को पहले से तैयार होना चाहिए .स्वास्थ्य तो उसके हाथ में नहीं है लेकिन जीवन यापन करने के लिए धन का संचय तो उसके हाथ में है .उसे अपने कमाए सम्पूर्ण धन का उपयोग बच्चों पर नहीं करना चाहिए .जमीन जायदाद भी मरते दम अपने पास रखना चाहिए ,मरने के बाद तो उन्ही बच्चों की ही होगी .
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