फिल्म बागबान से बुजुर्गों को क्या सबक लेना चाहिए  

घर- घर में बुजुर्ग रामायण सीरियल की तरह बागबान फिल्म देखकर अपना समय काटते हैं और बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को लेकर उनके दुख में शामिल होते हैं.

Oct 19, 2024 - 14:14
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फिल्म बागबान से बुजुर्गों को क्या सबक लेना चाहिए   

आए दिन  खबरें आती  है कि बुजुर्गों ने जैसे ही अपनी जमीन- घर  बेटों के नाम किया  उन्हें घर से निकाल दिया गया . या  घर से निकलने के लिए मजबूर करने के लिए षड्यंत्र चालू हो गए. 

      2003  में रवि चोपड़ा ने एक फिल्म बनाई थी बागबान  जिसमें अमिताभ बच्चन ,हेमा मालिनी ,परेश रावल ,सलमान खान , असरानी और कई कलाकार शामिल थे. घर- घर में बुजुर्ग रामायण सीरियल की तरह बागबान फिल्म देखकर अपना समय काटते हैं और बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को लेकर उनके दुख में शामिल होते हैं.

  बागबान  फिल्म की  कहानी संक्षिप्त में है कि बैंक से रिटायर होने वाले  अमिताभ बच्चन के पास अपनी  कोई बचत नहीं होती है .जो भी फंड उन्हें मिलता है वह भी वह अपने बच्चों में खर्च कर देते हैं .रिटायरमेंट के बाद ना तो उनका अपना रहने का ठिकाना होता है न ही खाने-पीने की व्यवस्था . बच्चों को बुलाकर वह अपनी मजबूरी बताते हैं . चारों बच्चे वेल  सेटल होने के बाद भी मां-बाप से कहते हैं कि वे  दोनों अलग-अलग रहकर एक-एक साल के लिए रोटेशन में  चारों बच्चों के पास जाकर रहे.

     अलग-अलग रहने के दौरान कुछ ही दिनों में दोनों  का उत्पीड़न शुरू हो जाता है .बेटों की पत्नियां  उनका  निरादर करती है. इस बीच  अमिताभ बच्चन की एक रेस्टोरेंट चलाने वाले परेश रावल और उनकी पत्नी से मित्रता हो जाती है .वे वहां जाकर कुछ एकाउंट्स का छोटा-मोटा कामकाज करने लगते हैं.

    बुढ़ापे में पति पत्नी के अलग-अलग रहने की  मजबूरी और उससे  दुख का विवरण  और अपनी जीवन गाथा टाइप करके एक उपन्यास बागबान नाम से अमिताभ बच्चन लिख देते हैं.

      परेशान हो कर एक दिन फोन पर अमिताभ और हेमा मालिनी दोनों तय  करते हैं कि अब और  बच्चों के पास नहीं रहेंगे  जो भी होगा वह भुगत  लेंगे. चुपचाप दोनों घर से निकल कर एक जगह पर मिलते हैं और अपने पुराने मकान मालिक के पास चले जाते हैं.  

    अमिताभ बच्चन का लिखा हुआ उपन्यास परेश रावल किसी प्रकाशक  को भेज देते हैं जहां वह प्रकाशित हो जाता है .देखते ही देखते अमिताभ प्रसिद्ध हो जाते हैं. उन्हें करोड़ों की रॉयल्टी मिलने की बात सुनकर चारों  बच्चे फिर मां-बाप के पास माफी मांगने जाते हैं .लेकिन इस बार उन्हें माफी नहीं मिलती है बस इसी नोड पर फिल्म समाप्त हो जाती है.

    आज से कोई  20 साल पहले आई फिल्म सबक देती है कि बुढ़ापे  के लिए हर व्यक्ति को पहले से तैयार होना चाहिए .स्वास्थ्य तो उसके हाथ में नहीं है लेकिन जीवन यापन करने के लिए धन का संचय तो उसके हाथ में है .उसे  अपने कमाए सम्पूर्ण धन का उपयोग बच्चों पर  नहीं करना चाहिए .जमीन जायदाद भी मरते दम अपने पास रखना चाहिए ,मरने के बाद तो उन्ही  बच्चों की ही होगी .

 

 

 

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Harishankar Sharma State Level Accredited Journalist राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार , 31 वर्षों का कमिटेड पत्रकारिता का अनुभव . सतत समाचार, रिपोर्ट ,आलेख , कॉलम व साहित्यिक लेखन . सकारात्मक एवं उदेश्य्पूर्ण पत्रकारिता के लिए न्यूज़ पोर्टल "www. apni-baat.com " 5 दिसम्बर 2023 से प्रारम्भ . संपर्क apnibaat61@gmail.com "Harishankar sharma " state leval acridiated journalist residing at ujjain mp. .working since 31 years in journalism field . expert in interviews story , novel, poems and script writing . six books runing on Amazon kindle . Editor* news portal* www.apni-baat.com