Mirzapur , bhaukaal , khakee जैसी वेब सीरिज प्रचुर हिंसा की वकालत करती हैं ?
देश का युवा वर्ग हिंसा के अतिरेक को बहुत ही रुचि से देख रहा है . देख ही नहीं रहा उसका गुस्सा कहीं नायक या खलनायक के रूप में बाहर निकल रहा है .यह घटनाक्रम कुछ 80 के दशक जैसा है जब एंग्री यंग मेन सामने आये थे .

यह सब में हो रहा है OTT के माध्यम से .देश का युवा वर्ग हिंसा के अतिरेक को बहुत ही रुचि से देख रहा है . देख ही नहीं रहा उसका गुस्सा कहीं नायक या खलनायक के रूप में बाहर निकल रहा है .यह घटनाक्रम कुछ वैसा ही है जब 80 के दशक में चॉकलेटी हीरो राजेश खन्ना ,धर्मेंद्र ,एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन से हार गए थे .लोगों ने अपने गुस्से को एंग्री मैन के रूप से सिल्वर स्क्रीन पर देखा था .
आज सिल्वर स्क्रीन की जगह एलइडी पर OTT प्लेटफार्म ने ले ली है . हमारे कानून और सेंसर बोर्ड की जो व्यवस्था है वह इसमें जो हिंसा व सेक्स दिखाया जा रहा है उसको घर घर जाने से रोक नही पा रही है . हमारे लॉ मेकर्स की नींद बहुत देर बाद खुलती है .
हिंसा के पर्यायवाची बन चुके उत्तर प्रदेश और बिहार के मिर्जापुर ,वासेपुर, मुजफ्फरपुर पर बने अति हिंसा के वेब सीरियल का जादू भारतीय युवाओं के सर पर चढ़कर बोल रहा है . मिर्जापुर के तो कई सीजंस आ गए है .
इस सीरिज के बारे में 12th Fail जैसी लोकप्रिय व शिक्षाप्रद फिल्म बनाने वाले विधु विनोद चोपड़ा ने प्रतिक्रिया देते हुए मिर्जापुर के एक्टर विक्रम मैसी को कहा कि वे इस सीरिज को दस मिनट भी नहीं देख पाए .
आज का बेरोजगार युवा इस तरह की हिंसा का हिस्सा तो नहीं बन सकता लेकिन अपने आक्रोश का प्रस्फुटन इन सीरियलों की हिंसा में देख रहा है .यह बात और है कि इन सीरियलों में गैंग लीडरों का महिमा मंडन किया जा रहा है.
जैसे कि मिर्जापुर सीरीज में पंकज त्रिपाठी कालीन भैया और गुड्डू भैया होता है कोई ऐसा गलत काम नही जो ये नहीं करते है फिर भी पापुलर केरेक्टर है .
यही नहीं हिंसा में रुचि देखते हुए अब पुलिस अधिकारियों के नायकत्व वाले वेब सीरीज जिनमे बिहार डायरीज पर खाकी और मुजफ्फरपुर पर भोकाल आदि सीरियल शामिल है में भी हिंसा का अतिरेक दिखाया गया है .
गोली चलना पहले बड़ी घटना हुआ करती थी आजकल सामान्य सी बात है .अब तो हिंसा को किस रूप में दिखाया जाए, कितना क्रूरतम तरीके से दिखाया जाए इसी बात पर राइटर डायरेक्टर जोर दे रहे हैं .
हिंसा को प्रतीकात्मक दिखाए जाने की बजाय अब तो किसी की जान लेकर उसके खून में नहाते दिखाया जाता है .किस तरह घात लगाकर हत्या करना,किसी के मर्डर का जश्न मनाना यह सब बड़े स्क्रीन टाइमिंग लेकर दिखाया जा रहा है.
अंग प्रदर्शन पर जिस तरह से सेंसर बोर्ड की कैंची चला करती थी अब वेब सीरिज में हिंसा और अंग प्रदर्शन को छोड़ दीजिए हम बिस्तर होने वाले सीन , महिलाओं को ब्लैकमेल करने के तरीके की हद पर महिलाओं का सेक्स शोषण आदि को विस्तार से चित्रित किया जाता है .जिसको युवा पीढ़ी के लोग बड़ा रस लेकर देख रहे हैं.
OTT प्लेटफार्म के नीति नियंता हिंदुस्तान के नाम पर विदेश में बैठे लोग हैं .अमेजॉन,डिज्नीस्टार और नेटफ्लिक्स जैसे लोग इस तरह के सीरियलों को बढ़ावा देकर भारतीय समाज को दूषित कर रहे हैं . हमारे कर्णधार कुछ कर नही पा रहे हैं
शासन की ओर से किसी भी तरह के नियंत्रण की बात भी होती है तो पूरा मीडिया इन्ही कम्पनियों की शह और धन बल से एक तरफ खड़ा होकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले की बात करने लगता है .
आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और अब इतनी हिंसा बर्दाश्त कर लेना हमारे लिए अनिवार्यता बन गया है . फिल्म कभी आमजन की प्रेरणा का विषय हुआ करती है .
ओटीटी प्लेटफार्म हिंसा , सेक्स विकृति की प्रेरणा देता नजर आ रहा है और इस पर किसी की नजर भी नहीं है .
एंग्री मैन का उदय भी इसी तरह हुआ था . 80 के दशक में फ़िल्मी दुनिया में प्रेम प्यार के चक्कर वाली फिल्में चल चल रही थी .साफ सुथरी और सकारात्मक सन्देश वाली फिल्मों का निर्माण भी किया जा रहा था .इसी बीच सलीम जावेद एंग्री यंगमैन कैरक्टर को लेकर आए.
जंजीर के बाद अमिताभ बच्चन का उदय हुआ.उसने तत्कालीन युवाओं के बेरोजगारी घुटन व आक्रोश को एक अभिव्यक्ति दी .महानायक अमिताभ बच्चन ने बाकी सब नायकों को हाशिये पर ला दिया.
कोरोना काल में ओटीटी का उदय होना भी कुछ इसी तरह देखा जाना चाहिए. जब सिनेमा हॉल बंद थे और मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे. बेरोजगारी चरम पर थी तभी सीरीज मिर्जापुर सामने आई .उसने हिंसा की नहीं परिभाषा भाषा गढ़ी.
बात-बात पर गोली मार देना ,हत्या के नए तरीके को इजाद कर दिखाया गया . बेरोजगार बैठे युवाओं के आक्रोश को हिंसा की एक नई अभिव्यक्ति मिली और उसके बाद तो ऐसी सीरीजों की सीरीज लग गई.
समाज में बढ़ रही अमीर गरीब की खाई के बीच पीसता युवा जो आज बेरोजगार है अंबानी -अडानी नहीं लेकिन एक सामान्य सा खुशहाल जीवन जीना चाहता है . वह परेशान है और इस परेशानी का रास्ता अब हिंसा में देख रहा है .
बाहुबली से नेता बने लोगों की तरफ युवा आकर्षित हो लालायित हो कर देख रहा है . उन्ही की तरह जीवन शैली अपना धनवान बनना चाहते हैं . इस सब सिस्टम में हमारा सिस्टम राजनीतिक ,प्रशासन और पुलिस भी कहीं शामिल है .शिक्षित करने का काम मिर्जापुर जैसे सीरियल कर ही रहे हैं .
OTT व टेलीविजन के कार्यक्रमों के लिए आचार संहिता और सेंसर बोर्ड आना चाहिए . जिससे कि युवा रचनात्मक कार्यों की तरफ आकर्षित हो ऐसे सिरियल को बढ़ावा देना चाहिए . हिंसा वाले सीरियलों को बंद कर पंचायत जैसे सामाजिक उद्देश्य वाली वेब सीरिज को आगे बढ़ाना चाहिए.
भारतीय समाज के मूल्य और परम्परा को बचाने के प्रयास होना चाहिए अन्यथा इंटरनेट और गूगल तो गंदगी से भरा पड़ा ही है और सब की पहुंच में भी है.
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