सोयाबीन का विकल्प तलाश करना होगा उज्जैन ,मालवा के किसानों को   

कुछ बुजुर्ग एवं युवा किसानों से बात करने  पर पता लगा कि मालवा क्षेत्र की भूमि अब रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड के भरपूर उपयोग के कारण कड़क हो गई है जिस तरह की भुरभुरी मिट्टी पहले हुआ करती थी अब नहीं है.

Oct 22, 2024 - 19:43
Oct 22, 2024 - 19:45
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सोयाबीन का विकल्प तलाश करना होगा उज्जैन ,मालवा के किसानों को    

किसान सबसे बड़ा कृषि वैज्ञानिक होता है. वह फसल की चाल और मिट्टी को हाथ में लेकर बता देता  है कि क्या उपज होने वाली है. इन दिनों सोयाबीन की फसल ने किसान को अत्यधिक निराश कर रखा है. बेमौसम बारिश के कारण कई किसानों की सोयाबीन खेत में ही सढ़ गई. कई लोगों ने उसको काटने की जरूरत भी नहीं समझी  और हकवा दिया. दूसरी फसल की तैयारी में लग गए.कहा जाता है कि किसान सबसे हिम्मत वाला जीव है ,कभी हार नहीं मानता.

लेकिन उज्जैन मालवा में किसान अब थकने लगा है.बार-बार की प्राकृतिक आपदाएं वर्षा चक्र में बदलाव और खुद किसान के हाथों रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड के अत्यधिक उपयोग के कारण  भूमि की उर्वरकता धीरे-धीरे नष्ट हो रही है, किसान इसको भाँप कर दुखी है.

    कुछ बुजुर्ग एवं युवा किसानों से बात करने  पर पता लगा कि मालवा क्षेत्र की भूमि अब रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड के भरपूर उपयोग के कारण कड़क हो गई है जिस तरह की भुरभुरी मिट्टी पहले हुआ करती थी अब नहीं है.

किसान इन दिनों  सोयाबीन से दोहरा दुखी है .एक तो उपज नहीं हुई दूसरे भाव भी नीचे चल रहे हैं.कभी 8 हजार क़ुन्टल  रहे सोयाबीन को चार-पांच में कोई पूछ नहीं रहा है.

 80 के दशक में जब सोयाबीन ने मालवा में प्रवेश किया तब इसका प्रचार करने के लिए घटिया के लवखेड़ी मंदिर के बाहर  बड़ा  होर्डिंग  लगा था जिस पर लिखा था सोयाबीन का देखो कमाल किसान हो गया मालामाल  अब सोयाबीन के कमाल से किसान बेहाल हो गया है.

किसान की मजबूरी है कि सोयाबीन से पीछा नहीं छुड़ा पा रहा है.एक तो आसानी से इसकी खेती हो जाती है, दूसरी फसल के लिए जमीन खाली भी जल्दी मिल जाती है.साथ ही सोयाबीन को ना तो सूअर खाते हैं ना ही बंदर, नीलगाय  भी कम नुकसान पहुंचाती है.

सोयाबीन के विकल्प के रूप में ज्वार और मक्का की खेती का सुझाव कृषि वैज्ञानिक देते हैं. इस बार शिवपुरी के कोलारस में मक्का की बंपर आवक ने प्रदेश भर के समाचार पत्रों में सुर्खियां बटोरी है. कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि शंकर ज्वार एवं मक्का के उन्नत बीज से सोयाबीन से अधिक उपज पैदा कर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

लेकिन इन फसलों पर आवारा जानवर  का प्रकोप रहता है.इस कारण से कोई भी किसान व्यक्तिगत रूप से इनकी फसल लेने से कतराता है.यह परिवर्तन तो तभी होगा जब शासन इस स्तर से तरीके से लोगों को समझाया - बुझाया जाए, आवारा पशुओं से रक्षा  में मदद की जाये तभी इस मोनो क्रॉप पैटर्न से मुक्ति मिलेगी.

किसानों को भी सरकार के भरोसे बैठने की बजाय अलग-अलग फसलों को उगाने की तरकीब, अच्छे बीज, जैविक खाद,वर्मी कंपोस्ट आदि का उपयोग कर अपनी खेती को बचाना चाहिए. अन्यथा मालवा के पंजाब बनने में ज्यादा देर नहीं लगेगी.

 

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Harishankar Sharma State Level Accredited Journalist राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार , 31 वर्षों का कमिटेड पत्रकारिता का अनुभव . सतत समाचार, रिपोर्ट ,आलेख , कॉलम व साहित्यिक लेखन . सकारात्मक एवं उदेश्य्पूर्ण पत्रकारिता के लिए न्यूज़ पोर्टल "www. apni-baat.com " 5 दिसम्बर 2023 से प्रारम्भ . संपर्क apnibaat61@gmail.com "Harishankar sharma " state leval acridiated journalist residing at ujjain mp. .working since 31 years in journalism field . expert in interviews story , novel, poems and script writing . six books runing on Amazon kindle . Editor* news portal* www.apni-baat.com