MP के मालवा क्षेत्र में monocrop पैटर्न खेती पर हावी हो चुका है. सोयाबीन का विकल्प ?
कृषि वैज्ञानिको ने ज्वार Sorghum की एक नई किस्म विकसित की है

सोयाबीन की खेती अब उतनी फायदेमंद नहीं रही , जितनी पहले हुआ करती थी.
कृषि वैज्ञानिको ने ज्वार Sorghum की एक नई किस्म विकसित की है RVJ -2357 इस किस्म की बुवाई करके किसान एक हेक्टर में 18 क्विंटल ज्वार का उत्पादन कर सकता है । ज्वार के भाव आजकल मंडी में 3000 रूपये क्विंटल से ज्यादा चल रहे हैं. यह ज्वार की किस्म अत्यंत लाभकारी है । इस किस्म का तीन क्विंटल बीज फिलहाल कृषि विज्ञान केंद्र उज्जैन में उपलब्ध है जो किसानों को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर वितरित किया जाएगा। किसानों को थोड़ी मात्रा में इस बीज से नया बीज तैयार करके अपने खेतों में ज्वार की बुवाई का रकबा धीरे धीरे बढ़ाना चाहिए। जिससे मोनो क्रॉप पैटर्न से छुटकारा तो मिले ही और सोयाबीन के स्थान पर एक ऐसी फसल की किस्म विकसित हो जो अधिक लाभदायक सिद्ध हो.
यह बात कृषि विज्ञान केंद्र उज्जैन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ आर पी शर्मा ने ' अपनी बात ' से
एक चर्चा के दौरान कहीं.उन्होंने कहा कि मालवा का किसान अत्यधिक जागरुक है और इस अति जागरूकता के चलते वह कई बार नुकसान उठा लेता है. हाल ही में काले गेहूं को लेकर इसी तरह की घटनाएं हुई है । शुरुआत में किसानों ने फायदा लिया लेकिन बाद में इसका खामियाजा भी किसानों को भुगतना पड़ा ।
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर आर के शर्मा ने किसानों से अपील की है कि वे नई किस्म के बारे में नवाचार करने के पहले कृषि वैज्ञानिकों या कृषि अधिकारियों से संपर्क अवश्य करें ताकि किसी तरह का नुकसान ना हो.
उन्होंने कहा मालवा क्षेत्र में किसानों की जागरूकता के कारण ही बीज प्रतिस्थापन seed replacement rate की दर 34 प्रतिशत के लगभग चल रही है जो कि संतोषजनक है. डॉ शर्मा ने कहा कि किसान वर्तमान मे कीटनाशकों pesticides का अतिशय प्रयोग कर रहे हैं ,साथ ही खरपतवार नाशक दवा का भी जमकर उपयोग किया जा रहा है ।इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है . उन्होंने कहा कि किसानों को घर पर ही गोबर से बने खाद का उपयोग करना चाहिए साथ ही नीम आदि से बनी हुई कीटनाशकों का उपयोग करके वे अपनी भूमि की उर्वरता बढ़ा सकते है ।
किसानों को बीज अत्यधिक महंगा उपलब्ध हो रहा है । इससे बचने के क्या उपाय
यह पूछने पर की बोनी के समय किसानों को बीज अत्यधिक महंगा उपलब्ध हो रहा है । इससे बचने के क्या उपाय हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि शासकीय बीज उत्पादन केन्द्रों द्वारा किसानों को पर्याप्त मात्रा में प्रमाणिक बीज उपलब्ध कराया जा रहा है ।इस बीज को वे अपने यहां शुरुआत में एक बीघा में बोकर आने वाली फसल के लिए बीज का उत्पादन कर सकते हैं । यह क्रम निरन्तर रखते हुए महंगे बीज की खरीद से बच सकते हैं व खुद ही बीज का उत्पादन कर सकते हैं. अच्छे बीज और बीज उपचार का महत्व बताते हुए डॉक्टर शर्मा ने कहा कि अच्छे बीज का उपयोग करने व बीज उपचार culture करने से उत्पादन का 35 प्रतिशत हिस्सा सुरक्षित हो जाता है. यदि अच्छा बीज व बीज उपचार नहीं होगा तो जहां 100 किलो उत्पादन होना चाहिए वँहा 65 किलो ही उपज होगी .
डॉ शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए वरदान सिद्ध हुई है । इस योजना से लागत का संपूर्ण हिस्सा सुरक्षित हो जाता है । ऋणी कृषको का तो शतप्रतिशत बीमा हो रहा है ।उन्होंने अऋणी कृषको से भी आगे बढ़कर फसल बीमा करवाने का आह्वान किया है.
डॉ शर्मा से ' अपनीबात ' की हुई पूरी बातचीत यूट्यूब की लिंक पर जाकर सुनी जा सकती है
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