झील में बत्तखो के झुण्ड को छड़ी के इशारे से हांकते देखना हो तो अल्लेप्पी से कोल्लम की बेक वाटर जर्नी करें
हम लोग Boat की छत पर जाकर बैठ गए जो ओपन थी और यहां से दोनों और के नजारे बहुत ही सुंदर नजर आ रहे थे . अचानक मुझे अनूप जलोटा द्वारा गाई गई एक ग़ज़ल की पंक्तियां याद आ गई मै नजर से पी रहा हूं यह समां बदल ना जाए .
एलेप्पी से कोल्लम बैकवॉटर जर्नी
केरल के Back water के बारे में 90 के दशक में इंडिया टुडे में टूरिज्म को लेकर एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ . केरल को Gods own Country कहा जाता है .केरल के टूरिज्म को विकसित करने में वहां के तत्कालीन पर्यटन सचिव Dr Amitabh kant का हाथ है उन्हीं के द्वारा टूरिज्म का व्यापक प्रचार प्रसार किया और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का कार्य किया गया . अमिताभ कांत आजकल Niti Ayog के सीईओ है।
इंडिया टुडे के आलेख को पढ़कर मन में हुआ कि कभी अवसर मिला तो केरल जाकर बेकवाटर जर्नी का अनुभव करेंगे। इस बात को कोई दो दशक बीत गए. संयोग से अवसर आया और कुछ मित्रों के साथ नागदा से मरूसागर एक्सप्रेस में बैठ गये ।
जोधपुर से लेकर एर्नाकुलम स्टेशन तक जाने वाली Marusagar express बॉम्बे ,कोकण रूट , गोवा और मेंगलुरु होकर एर्नाकुलम 38 घंटे में पहुंचती है.
Kochin (Ernakulam ) में एक नाइट रुक कर अगले दिन सवेरे –सवेरे Alleppy या अल्पूझा जाने वाली ट्रेन से लगभग 9:30 के आसपास एलेप्पी पहुंच गए । अलेप्पी से कोल्लम के लिए 70 सीटर बोट तैयार खड़ी थी. हमने टिकट लिया और उस वोट में सवारी कर ली । अल्लेप्पी से कोल्लम तक डबल डेकर बोट सुबह 10:30 बजे निकल कर शाम को 6:30 बजे पहुंचती है .यह दूरी कोई 80 किलोमीटर है जो Boat से तय होती है । अल्लेप्पी से निकलकर कुछ ही देर में हम वेबनाड झील में प्रवेश कर गए. झील में के बहुत सारी छोटी नोकाए दिखाई दी बताया गया कि यहां पर हर साल नेहरू ट्रॉफी होती है जिसमें हजारों लोग नौका प्रतियोगिता को देखने के लिए इकट्ठे होते हैं ।
बोट हौले- हौले बैक वाटर से होकर आगे बढ़ने लगी . जैसे-जैसे आगे जा रहे थे हमारे सामने एक नया ही दृश्य उपस्थित था . नहर के दोनों किनारो पर लाइफ अपने हिसाब से चल रही थी .लोगों के घर थे ,कुछ लोग फिशिंग कर रहे थे, कई महिलाएं अपने घर के कपड़े धो रही थी .यह हम उत्तर भारतीय लोगों के लिए एक अलग ही अनुभव था .छोटी नदी जैसी कैनाल में में लोग नाव से आ जा रहे थे .छोटे-छोटे रोजमर्रा के काम कर रहे थे .कोई नाव में सब्जी भाजी की दुकान लेकर आए थे तो कोई सीमेंट सरिया । बताया गया कि यहां के के सभी काम व आवागमन इस बेक वाटर के परिवहन से ही होते हैं . गांव को जोड़ने का काम नहरों का ही है . केरल में 900 किलोमीटर लंबे इस बैक वाटर में इस तरह का जनजीवन है देखकर आश्चर्य हुआ . केरल के बैकवॉटर को पूर्व का वेनिस कहा जाता है।
किस्मत से हमारे Boat में एक इटालियन कपल भी था जो अंग्रेजी भी अच्छे से बोलता था . उनसे बातचीत में पता लगा कि वेनिस में भी इसी तरह का जीवन है लेकिन वहां उसकी लंबाई इतनी नहीं है . बहुत ही थोड़े से क्षेत्र में नहर है यहां तो एक 900 किलोमीटर लंबा अंतहीन सिलसिला है . इसमें से मात्र 80 किलोमीटर की यात्रा में हमें आठ घंटे लगे .
हम लोग बोट की छत पर जाकर बैठ गए जो ओपन थी और यहां से दोनों और के नजारे बहुत ही सुंदर नजर आ रहे थे . अचानक मुझे अनूप जलोटा द्वारा गई एक ग़ज़ल की पंक्तियां याद आ गई मै नजर से पी रहा हूं यह समां बदल ना जाए .
जलयात्रा लम्बी थी लेकिन कहीं से भी बोर नहीं हो रहे थे . हर बार एक नया दृश्य सामने होता था. नहर से निकलकर झील में , झील से से नदी के मुहाने तक पहुंच कर अत्यधिक रोमांचित हो उठना इस यात्रा की खासियत है । यात्रा के मनोहरी दर्शन और अनुभव को शब्दों में बांधना अत्यधिक कठिन है । कुछ दृश्य ऐसे होते है जिन्हें महसूस ही किया जा सकता है, बयान नहीं किया जा सकता ।
केरल अपने टूरिज्म के लिए विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है .यहां पर बैक वाटर के साथ-साथ स्थान -स्थान पर आयुर्वेद ने भी स्वयं को स्थापित कर लिया है. विदेशी लोग यहां के आयुर्वैदिक स्पा में महीनों रहकर स्वास्थ्य लाभ लेते हैं।
दोपहर के कोई 1:00 बजे होंगे और बोट साइड में लंगर डालकर खड़ा हो गया . यहां पर बहुत ही रमणीक स्थान पर एक रेस्टोरेंट बना हुआ था जहां लंच ब्रेक दिया गया. पारंपरिक केरला खाने का स्वाद हमने यहां चखा . चावल के साथ रसम , साम्भर व कई तरह की मसाला चटनिया परोसी गई जो जबान पर देर तक अपना असर दिखाती रही । भोजन के बाद फिर से यात्रा शुरू हो गई . फिर वही नारियल के पेड़ों का झुरमुट और आसपास के कस्बे पीछे छूटने लगे . हरियाली उमस वाले वातावरण में मन को ठंडक प्रदान कर रही थी ।
जैसे ही बोट किसी झील में प्रवेश करती कई केटूवलम दिखाई पड़ती. केटूवलम एक प्रकार का केरल का यूनिक हाउसबोट है जो नारियल और अन्य पेड़ों के पत्तों और किमचियों से तैयार किया जाता है . इस में वेस्टर्न टॉयलेट्स व एयर कंडीशन लगे हुए हैं . झील के बीचों बीच लोग इसमें रात्रि बिताते हैं । इस का एक दिन का किराया 10000 से ऊपर ही होता है . बैकवॉटर जर्नी के ठीक बीच में मां अमृतानंद आश्रम दिखाई दिया. अमृतपुर में बने आश्रम में 3000 से अधिक लोग रहते हैं .
बैकवॉटर जर्नी के बीच-बीच में कई बार डक फॉर्मर जल - मुर्गियां Duck जिनकी संख्या 500 -700 से अधिक होगी को अपने छड़ी के इशारों से व मुंह से आवाज निकाल कर अपने हिसाब से पानी में हांकते हुए ले जाते दिखाई पड़ते है . जैसे उत्तर भारत में ग्वाले चौपायो को हांक कर ले जाते है .यह भी कोतुहल का विषय है .
बैकवॉटर जर्नी समाप्ति की ओर थी. शाम ढल रही थी और एक बड़ी सी नदी का मुहाना आ गया. जहां से समंदर दिखाई पड़ रहा था .नदी के मुहाने और समुद्र के प्रवेश द्वार पर हमने सूर्यास्त के खूबसूरत नजारों को देखा और कोल्लम की ओर चल पड़े. 80 किलोमीटर की यह बेकवाटर जर्नी हमारे जीवन की सबसे लंबी जलयात्रा थी. इसका हमने भरपूर आनंद लिया प्राकृतिक दृश्यों का जी भर कर नजरों से पान किया।
Backwater of kerala
केरल में आपस में जुड़ी हुई नदिया और नहरो का लगभग 900 किलोमीटर से अधिक लंबा नेटवर्क है .यह जलमार्गों की भूल भुलैया है .इस नेटवर्क में पांच बड़ी झीले और 38 नदियां शामिल है . इस नेटवर्क में पश्चिमी घाट श्रृंखला से नीचे बहने वाली कई नदियों के मुहाने पर कम अवरोध द्वीप बन गए हैं जिनके कारण इन नहरो में 12 महीने स्थिर पानी भरा रहता है. इसे ही बैक वाटर कहा जाता है. इस संपूर्ण परिदृश्य में कई कस्बे व शहर बसे हैं और वेबनाड नाम की सबसे बड़ी झील नेटवर्क में शामिल है।
कैसे जायें
कोचीन और त्रिवेंद्रम हवाई मार्ग से सम्पूर्ण भारत से जुड़ा है .
दिल्ली , भोपाल , मुंबई , इंदौर , उज्जैन से कोचीन व त्रिवेंद्रम की सीधी ट्रेन उपलब्ध है .
.कब जाये
सितम्बर से फरवरी के बीच .
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