सह्याद्रि बुलाता है
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1.आकाश में सागर कहीं नही
1.1 निकल पड़े
1.2 माथेरान बारिश में ही क्यों
बरसात में भीगी सुबह ने स्वागत किया। जिसका लंबे समय से इंतजार था । घर के बाहर निकलते ही प्रकृति का हरित सौंदर्य चारों तरफ बिखरा पड़ा था । तेज बारिश , हरियाये पेड़ों की लहराती पत्तियां , वक्त को ठहरने के लिए कह रही थी । निश्चित रूप से इसके लिए प्रकृति को धन्यवाद देना चाहिए ।जो सबका ख्याल रखती है ।किसी ने कवि ने कहा है कि "बरसे तो भर दे जल जंगल ,आकाश में सागर कहीं नहीं " . सच है आकाश का सागर दृश्य नहीं है .
निकल पड़े
बात मध्य जुलाई की है जब मन हुआ कि कहीं बाहर घूमने जाया जाए । दो मित्रों को तैयार किया सपत्नीक वाहन करके निकल पड़े ।पहले साईं बाबा के दरबार में माथा टेका और फिर महाराष्ट्र के छोटे से स्टेशन कर्जत से नेरल होते हुए माथेरान की पहाड़ियां चढ़ गए । खड़ी चढ़ाई पूरी कर रात के लगभग 8:00 बजे बेस कैंप में पहुंचे । इस छोटे से खूबसूरत पहाड़ी स्थान की विशेषता है कि यहां पर आने वाले पर्यटकों को एंट्री प्वाइंट पर ही रोक लिया जाता है और वही गाड़ियों की पार्किंग करा दी जाती है ।यहां से या तो आप टॉय ट्रेन से ही ऊपर जा सकते हैं या फिर घोड़े पर बैठकर जाना होता है । रात हो गई थी इसलिए हम लोगों ने महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम के होटल में कमरा बुक कराया और बेस पर ही रुक गए ।
आगे की यात्रा के लिए सवेरे उठकर घोड़े पर बैठकर की । सुंदर पहाड़ी शहर तक पंहुचना आसान है । रेल से नेरल या कर्जत उतर कर टैक्सी मिल जाती है । खुद का वाहन भी ऊपर तक जाता है । माथेरान के दोस्ताना वनों के बीच पुराने समय के पारसी धनाढ्यों के बंगले हैं ,जो आजकल चौकीदारों के हवाले हैं । कोई रहता नहीं ,यदा-कदा कोई आता है और चला जाता है । मुम्बई जैसी भीड़ भाड़ वाली जगह के एकदम निकट इतना छोटा सा शांत हिल स्टेशन पा कर आपका मन प्रफुल्लित हो जाता है । ऊपर से सह्याद्रि की पहाड़ियों पर बरसता पानी मन में तरंग पैदा कर देता है ।
जब काले स्याह बादल टूट पड़े
आम तौर जो सभी हिल स्टेशन पर होते हैं उसी तरह के व्यूप्वाइंट देखकर हम लोग दो-तीन घंटे में फ्री हो गए ।एक जगह बैठ कर जलपान वगैरह किया ।इतने में ही स्याह काले बादल घनघोर बारिश के मूड में नजर आते दिखे । साथ के दो मित्रों का मन मौसम का लाभ उठाने के लिए मचल उठा । सो उन्होंने न आगा देखा ना पीछा मुझसे कह दिया कि भाई तुम आगे जाओ हम दोनों बाद में आते हैं । मैं पत्नी और दोनों आदरणीय भाभियों के साथ पैदल ही निकल पड़ा बेस कैंप के होटल तक जाने के लिए । भाई लोग वंही रुक गए अपने शौक के साथ । तबीयत से शौक पूरा किया । बाद में दोनों ने अलग अलग बताया दूसरे को ज्यादा हो गई थी । कुल मिलाकर मौसम , पहाड़ और बारिश ने इनका नशा कई गुना बढ़ा दिया था ।
हम लोग बारिश में हाथों में चप्पल उठाये पैदल नंगे पांव चल पड़े 2.5 से 3 किलोमीटर लंबे पहाड़ी रास्ते पर । बारिश जो शुरू हुई तो पहली बार पता लगा कि
टूटकर बारिश होना किसे कहते हैं । हमारे मालवा में
जमी - ठमी बारिश होती है ,
मालवी ठसक वाली । आजकल तो वो भी नहीं होती । लेकिन पहले के समय लगातार 8 दिन तक बारिश की झड़ होना ,गॉंवों का कीचड़ से सराबोर हो जाना आम बात होती थी । पहाड़ पर 3 किलोमीटर के रास्ते में महिलाओं को लेकर होटल के लिए निकल पड़ा ।रास्ते में बारिश ने पूरे समय हमारा साथ दिया जमकर हुई । रास्ता भी समझ में नहीं आ रहा था ।घनघोर बारिश में गिरने से बचते बचाते चल पड़े । हरियाली के बीच लाल लेटराइट मिट्टी पर गिरता पानी लाल रंग का हो कर बह रहा था , जो हर बारिश में याद आता है । बारिश का मौसम छोटा सा हिल स्टेशन । मेरे हिसाब से वहां पर बारिश में जाया जाए तो ही आनंद है ।ठंड में भी जाया जा सकता है ।बारिश में एक आकर्षण जरूर वहां पर कम हो जाता है वह है टॉय ट्रेन जो बारिश में बंद हो जाती है , ठंड में चलती है ।
माथेरान बारिश में ही क्यों
बारिश में माथेरान में पैदल घूमना और महाराष्ट्र की घनी बारिश को भीतर तक महसूसना और किसी हिल स्टेशन पर मिलना मुश्किल है । आमतौर पर यहां के खाने महाराष्ट्र की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं । मिसल पाव ,वडा पाव, सेव भाजी और कुछ नॉनवेजिटेरियन भोज्य पदार्थ वह सब चटपटा खाने वाले लोगों के लिए अलौकिक आनंद प्रदान करते हैं । तन मन को भिगोने वाली बारिश में ' रिम झिम घिरे सावन का ' आनंद यंही आ कर लिया जा सकता है । यंहा के लोग सरल हैं संख्या बहुत कम हैं ।बीच-बीच में आने जाने वाले पुराने बंगलों के मालिक वृद्ध पारसी जो पालकी में बैठकर ऊपर तक जाते हैं एक अलग ही दृश्य दिखाते हैं ।
पर्वतों के उत्तुंग शिखरों का दर्शन निश्चित रूप से बारिश में और मनोरम होता है ।
यहां के पहाड़ अनमने से नहीं लगते , लगता है अभी बोल पड़ेंगे , बाहें पसार कर कहेंगे कि आओ
सह्याद्रि तुम्हारा स्वागत करता है । पर्यावरण के प्रति चिंतित यह हिल स्टेशन हमारे हिमाचल उत्तराखंड के हिल स्टेशनों से कुछ भिन्नता लिए हुए हैं । यहां पर पेट्रोल वाहन का नहीं चलतै है । पैदल ,घोड़े या पालकी से ही घूम सकते हैं । लगभग 8 वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्रफल का हिल स्टेशन बार-बार बुलाता है । ठीक उसी तरह जिस तरह हमारे मित्र जहां भी जाते हैं दो पेग के बाद तुरंत कह देते हैं अरे ये तो स्वर्ग है ,अगली बार यहां परिवार को भी लाऊंगा । लेकिन इस यात्रा में वे परिवार सहित थे ,इसलिए यह जुमला उनसे सुन नहीं पाए ।
कैसे जाए माथेरान
मुंबई पुणे रेल मार्ग से कर्जत स्टेशन उतर कर टैक्सी से पहाड़ पर जा सकते है , हवाई मार्ग से मुबई तक फिर टैक्सी से . सड़क मार्ग से कर्जत नेरल . टॉय ट्रेन आजकल अमन लॉज स्टेशन से माथेरान के बीच चलती है .