गाँव में मिठास की चरखी अभी भी चल रही है ,आत्मीय आग्रह की कोई कीमत होती है क्या ?
कभी गांवों में गन्ने की पेराई करने वाली चर्खियों के रस में मन की मिठास होती थी . आत्मीयता से एक और गिलास पीने का आग्रह आजकल पीछे छूटता जा रहा है . मनुहार का दौर बीत गया लगता है .

गर्मी का सीजन आते ही शहर के मोहल्ले - मोहल्ले गन्ने का रस निकालने वाली चरखिया उग आती है . बेशक गन्ने के रस में मिठास होती है .लेकिन कभी गांवों में गन्ने की पेराई करने वाली चर्खियों की तरह इनके रस में मन की मिठास नही होती है . आत्मीयता से एक और गिलास पीने का आग्रह पीछे छूटता जा रहा है . मनुहार का दौर बीत गया लगता है .
जनवरी के दिन थे . फोन की घंटी बजी दूसरी और एल डी सर थे । लीलाधर उन्हें सभी लोग एल डी के नाम से पुकारते हैं । उन्होंने कहा अगले संडे को क्या कर रहे हैं , घर पर एक छोटा सा गेट –टू- गेदर रखा है जिसमें मेरे 6 टी से लेकर 11 वीं तक साथ पढ़े हुए मित्र लोग आ रहे हैं। यहां परसोली गांव में घूमेंगे, खेत पर जाएंगे। चरखी का सीजन चल रहा है ताजा गुड़ और गन्ने का रस भी रहेगा । आप भी आएंगे तो अच्छा लगेगा ।
एलडी से मेरी मित्रता बौद्धिक ज्यादा है .ना तो मैं उनके साथ कहीं पढा हूं ना ही नौकरी में संपर्क में रहा हूं । लेकिन वे कविताओं , साहित्य के प्रेमी है और इसी माध्यम से हम एक दूसरे के संपर्क में हैं . एलडी (67) मुझसे 5 साल बडे़ हैं और जिनको वे 6 टी पास मित्र बता रहे थे वह भी उनके हम उम्र ही है। सभी लोग रिटायर्ड जीवन बीता रहे हैं। एल डी सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल से कोई 5 साल पहले रिटायर हुए हैं और उज्जैन की तराना तहसील के गांव में रहकर खेती-बाड़ी का कामकाज देख रहे हैं । गांव में सामाजिक कार्य मे सक्रिय है .
उनका आग्रह था कि सुबह 10 बजे गांव पर पहुंच जाए । मैंने कहा मेरे बाएं हाथ में दर्द है और मैं कार नहीं चला पाऊंगा ,डायबिटीज वगैरा है ही। वे बोले आप बस से आ जाओ हम सड़क पर मोटरसाइकिल वाले को भेज देंगे जो गांव तक ले आएगा । मेरा आकर्षण बढ़ाने के लिए उन्होंने कह दिया कि इस आयोजन में उनके अभिन्न मित्र व वरिष्ठ व्यंगकार जगदीश ज्वलंत भी आ रहे हैं । आग्रह स्वीकार करना ही पड़ा . लेकिन मैंने अपने निकट के मित्र मनोहर सोनी से आग्रह किया कि इस तरह का आयोजन है और आप भी चले तो अच्छा रहेगा . वे सहज भाव से तैयार हो गए , इस बीच मैंने एल डी से कहकर उनको फोन भी लगवा दिया ।
हम लोग कार से पहुंचे साथ में व्यंग्यकार मित्र भी हमारे साथ थे .गांव पर पहुंचकर धीरे-धीरे के मित्रों का मजमा लगने लगा । उनके मित्रों के फेहरिस्त में दो लेक्चरर , एक खेती बड़ी करने वाले , एक खेल अधिकारी, एक कांग्रेस के लीडर और एक ओएनजीसी में चीफ इंजीनियर के पद पर कार्यरत रहे व्यक्ति शामिल थे . देख कर सुखद आश्चर्य हुवा ।
4 घंटे के इस समागम में न पद की प्रतिष्ठा का घमंड और ना ही पुरानी किसी को याद को लेकर कसक थी . सब सरलता से यादों में बहे जा रहे थे . स्मृतियों का अलाव जनवरी के महीने की दोपहरी में 40 -45 साल बाद जल उठा . शायद किसी ने इसकी कल्पना नहीं की थी । उम्र के इस पड़ाव पर लगभग सभी लोग डायबिटिक थे लेकिन जब चरखी पर पहुंचे तो क एल डी के परिजन बद्री लाल जी कुड़ी वाले का जादू चला । उन्होंने बड़ी मात्रा में नींबू मिलाकर गन्ने का रस निकलवाया और आग्रह पूर्वक एक - एक मित्र को रस पीने का आग्रह ही नही किया बलकि मनवाया । ग्रामीण लहजे और वेशभूषा के साथ वे साथियों के साथ मीठे गन्ने के रस में नींबू की तरह मिलकर समागम का स्वाद बढ़ा रहे थे .
सभी ने दो-दो गिलास गन्ने का रस दबाया गर्म गुड़ की मिठास का आनंद लिया । मैं और मेरे मित्र एम सोनी इस ग्रुप के लिए सर्वथा नए थे . एल डी से मेरी मुलाकात बहुत ज्यादा नहीं हुई थी बौद्धिक संपर्क था पर यहां पर एक अलग ही दुनिया में सभी लोग थे . सभी पुराने मित्रों यह विशेषता थी कि हमें उन्होंने अकेलापन महसूस नहीं होने दिया और उसी तरह व्यवहार किया जैसे हम भी उनके साथ पांचवी से साथ पढ़े हो ।
इस छोटे से गेदरिंग का सबसे बड़ा आकर्षण था ओएनजीसी में चीफ इंजीनियर के पद से सेवा निवृत हुए मुकेश शास्त्री की धर्मपत्नी का जो बिना शास्त्री जी को बताएं पहले ही गांव पहुंच गई और अपने ही पति को उन्होंने सरप्राइज दे दिया । विदुषी महिला ने कराओके के माध्यम से गीत- संगीत का कार्यक्रम भी आयोजित कर डाला . सभी ने डटकर विशुद्ध मालवी तौर तरीको से बनी दाल- बाटी और लड्डू का आनंद लिया . कुछ इस तरह 11 th क्लास फिर से जागृत हो गई छोटे से गांव में । एल डी के परिवार के लोगों ने आयोजन आनंद लेते हुए उसमें खुले मन से सहभागिता की . सभी लोग फिर मिलेंगे कहकर अलग हुये । मन ही मन सोचा आत्मीय आग्रह की कोई कीमत होती है क्या ? लगा कि गाँव मे मिठास की चरखी अभी भी चल रही है .
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