You can visit McLeod Ganj, Dharamshala and Bhakra Dame in one go. Sunday Travel story
रेलवे के ऐप पर जाकर ट्रेन का रूट चेक किया तो पता लगा कि दिल्ली से यह ट्रेन सुबह 6:00 बजे शुरू होकर अंबाला, चंडीगढ़ इसके बाद आनंदपुर साहिब Anandpur sahib , ऊना Una होकर अम्ब अंडोरा जाकर terminate होगी.

देश में जब दूसरी वंदे भारत ट्रेन vande bharat की घोषणा हुई और यह समाचार अखबारों में छपा तो पता लगा की दूसरी वंदे भारत ट्रेन दिल्ली से अंबअंडोरा तक जाएगी . पहली वंदे भारत ट्रेन दिल्ली से बनारस के बीच चली और इसने खासी लोकप्रियता अर्जित कर ली थी. दूसरी ट्रेन जैसे ही घोषित हुई एक अनजान सा नाम सामने आया अम्बअंडोरा Ambandoura इसने ने ध्यान खींच लिया. जिज्ञासा हुई यह स्टेशन कहां है और क्या इतना महत्वपूर्ण है कि दिल्ली से यंहा तक वंदे भारत ट्रेन चलाई जाए.
रेलवे के ऐप पर जाकर ट्रेन का रूट चेक किया तो पता लगा कि दिल्ली से यह ट्रेन सुबह 6:00 बजे शुरू होकर अंबाला, चंडीगढ़ इसके बाद आनंदपुर साहिब Anandpur sahib , ऊना Una और अम्ब अंडोरा जाकर terminate होगी. अम्ब अंतिम स्टेशन है यहां से पहाड़ लग जाता है. ठीक वैसे ही जैसे काठगोदाम से नैनीताल Nainital का पहाड़ लगता है .
आनन फानन में टिकट होना थे इसलिए दिल्ली के कन्फर्म टिकट नहीं मिल रहे थे। उज्जैन से दिल्ली जाने के लिए जिस ट्रेन में टिकट उपलब्ध होते हैं वह है भोपाल से नई दिल्ली शताब्दी। इस ट्रेन में एक दिन पहले भी कंफर्म टिकट मिल जाता है ।
वंदे भारत ट्रेन का हमारा यह सफर पहला था निश्चित रूप से अत्यंत ही रोमांचक वह खुशनुमा माहौल में हम वंदे भारत में बैठे। सुबह सुबह-सुबह सीट पर समाचार पत्र ने हमारा स्वागत किया ट्रेन चली वैसे ही कुछ ही देर में चाय कॉफी नाश्ते की प्लेट सामने आ गई। हमने जाने और आने दोनों ही टिकट टिकट वंदे भारत से बुक कर लिए थे। जाने में क्योंकि ट्रेन सुबह11:30 बजे अंतिम स्टेशन पर पहुंच जाती है इसलिए इसमें केवल नाश्ता ही सर्व किया जाता है ,आने के समय 1:00 बजे जब वापसी होती है तो बीच में रात 8:00 बजे डिनर प्रोवाइड किया जाता है ।
दोपहर के कोई 11.30 बजे हमारी वन्दे भारत अपने आखिरी स्टेशन अम्ब अंडोरा पहुंच गई।आमतौर पर होता यह है कि जब हम कोई खास प्लान तैयार करके नहीं जाते हैं तो हमारे पुराने तय किए प्लान धरे रह जाते हैं .टैक्सी वालों ने अपने मतलब की बात की और हमें इस बात के लिए तैयार कर लिया कि हम ना ऊना जाएंगे ना ही आनंदपुर साहिब । आज दिन भर भाखड़ा डैम घूमेंगे वहीं किसी रिसोर्ट में रुकने और अगले दिन ज्वालामुखी के दर्शन करते हुए धर्मशाला और मैक्लोडगंज में किसी एक जगह नाइट हाल्ट करने का नया कार्यक्रम बन गया। दोपहर के एक बज रहे होंगे हमने अम्ब शहर का एक चक्कर लगाया और भाखड़ा डेम की ओर चल पड़े। टैक्सी ड्राइवर नया लड़का था, बहुत बातूनी भी था सो यहां वहां की हांकने लगा।
Bhakara dam
भाखड़ा डेम Bhakara dam स्वतंत्र भारत की सबसे पहली महत्वाकांक्षी बहुउद्देशीय परियोजना थी .जिसको पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रूस के सहयोग से आगे बढ़ाया था । यह डेम 1948 से शुरू हुआ सतुलज satulaj नदी पर और बनते बनते 1963 में जाकर पूरा हुआ। भाखड़ा हिमाचल में है और नंगल Nangal पंजाब में . संयुक्त रूप से दो डेम की परियोजना थी .भाखरा डेम 226 मीटर ऊँचा 518.2 मीट लम्बा 9.1 मीटर चौड़ा है . 9.34 मिलियन घन मीटर जल संग्रहण क्षमता है इसका रिजर्वायर 90 किलोमीटर लम्बा है . यह एशिया का दूसरा सबसे ऊँचा डेम है , पहला टिहरी है .
आधुनिक काल में बने हुए डेमो में हमने बरगी , तवा, सरदार सरोवर , इंदिरा सरोवर , ओंकारेश्वर ,महेश्वरी आदि डेम देखे हैं लेकिन इस पुरानी संरचना को देखना है अद्भुत अनुभव से गुजरने जैसा था। रात 7:00 के आसपास हम डेम के दूसरी ओर थे .चारों तरफ बिजली से डैम रोशन था . किनारे पर हमने देखा की लाइन से ताजी मछलियों को तलकर खिलाने वालो की दुकान लगी हुई थी .आने वाले टूरिस्ट ताजी मछलियों का आनंद लेने के लिए यहां गाड़ियों में भर भर कर पहुंच रहे थे. हिमाचल और पंजाब में वैसे भी मांसाहार का प्रचलन ज्यादा है शायद इसीलिए यहां पर इस तरह की दुकानें सजी हुई थी . इस तरह की दुकान गुजरात मध्य प्रदेश में देखने में नहीं आती है। भाखड़ा जल तीर्थ के दर्शन के बाद हम नीचे अपने रिसोर्ट में आ गए .रात्रि विश्राम कर सुबह-सुबह नाश्ता करके फिर पहाड़ चढ़ने की तैयारी कर ली । अबकी बार ड्राइवर को कड़े शब्दों में समझा दिया गया कि आराम से चलना है और कोई करतब बाजी नहीं करना है।
भाखड़ा से अम्ब को बाईपास करके हमसे पहाड़ चढ़ गए .धीरे-धीरे ज्वाला देवी Jwala devi तक पहुंच गए सुबह के 10:00 बजे होंगे यहां लंबी लाइन लगी थी .दर्शनार्थियों के साथ हमने भी लाइन में लगकर दर्शन किए . हर धर्म स्थल की तरह यहां भी व्यवस्था फैली हुई थी. वीआईपी के नाम पर आम दर्शनार्थियों को लंबे समय तक इंतजार करवाया जाता है।
Dharmshala , Macloudganj
धर्मशाला में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच के लिए बहुत ही आधुनिक स्टेडियम बना हुआ है. स्टेडियम देखने के लिए गए लेकिन समय समाप्त हो गया था इसलिए आसपास और दूर से देखकर संतोष करना पड़ा।
धीरे-धीरे रात हो रही थी हम धर्मशाला के माल रोड पर पहुंच गए थे .माल रोड पर दुकाने खुली थी लोगों की शॉपिंग चल रही थी .हमने भी पूरे मॉल रोड का भ्रमण किया और हिमाचल प्रदेश के खादी ग्रामोद्योग एंपोरियम में चले गए। मित्रों ने यहां से शॉल, गर्म कपड़े जैकेट व साड़ी खरीदी।
यहां से एक जैकेट खरीदी. 2012 में मनाली से खरीदे हुए जैकेट की याद आ गई .हिमाचल प्रदेश के खादी ग्रामोद्योग एंपोरियम में मिलने वाली सामग्री सभी पहाड़ों पर मिलने वाले गर्म कपड़ों में सबसे श्रेष्ठ होते हैं . मात्र ₹800 में जैकेट मिल गई जो 2012 में ₹600 मिली थी . इस तरह की जैकेट सालो चलती है . हिमाचल और उत्तराखंड जाने वाले टूरिस्ट से मेरा आग्रह है कि वे हिमाचल के खादी ग्राम उद्योग एंपोरियम से ही गर्म कपडे खरीदें .
लगभग 8:00 बजे के आसपास हम धर्मशाला से मैकलोडगंज की ओर चल पड़े . खड़ी पहाड़ी चढ़ाई थी . लेकिन मात्र आधे घंटे की चढ़ाई में हम मेकलाडगंज पहुंच गए. यह वह जगह है जहां पर निर्वासित हो दलाई लामा तिब्बत की सरकार चलाते है . दलाई लामा का आवास व मन्दिर मठ भी यहीं पर है। पहाड़ों में मार्केट जल्दी बंद हो जाते हैं लेकिन जब हम पहुंचे तो मार्केट खुला हुआ था . अच्छी होटल भी देख कर एक होटल कर लिया। रात में खाना खाकर सो गए .सुबह जब उठे तो होटल के जिस कमरे में ठहरे थे उसके आसपास चारों तरफ कांच की खिड़कियां थी और सामने व्यू प्वाइंट दिख रहा था। बर्फ से घिरी धोलाधर पहाड़ की चोटियों को देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा । यहां के कर्मचारियों ने बताया कि जाड़ों में मैकलोडगंज में भी आए दिन बर्फबारी होती रहती है.
सुबह नाश्ता वगैरह करके हम दलाई लामा Dalai Lama के मंदिर में गए. वहां लामाओं से बातचीत कर मंदिर के बारे में जानकारी प्राप्त की । हमारी वापसी यात्रा शुरू हो गई थी. पहाड़ उतर कर दोपहर में करीब 12 बजे तक हम अब अम्ब अंडोरा आ गए 1 बजे हमारी ट्रेन थी जो सही समय पर खुल गई। एक बार फिर वापसी यात्रा में वंदे भारत ट्रेन के सफर का आनंद लिया .रात का डिनर भी हमने वंदे भारत में किया और 10 बजे इंदौर नई दिल्ली इंदौर से वापस उज्जैन पंहुचे । इस तरह खत्म हुआ एक और सुहाना सफर । समय मिले तो आप भी जाइए एक बार धर्मशाला और मैकलोडगंज . पहाड़ों में जाना भी अपने आप में एक सुकून भरा अनुभव होता है।
What's Your Reaction?






