नैनीताल Nainital यात्रा एक सुखद अनुभव , पहाड़ो में सबसे सुंदर ,सुखद व मनोरम स्थल Sunday travel story
रात में नैनी झील के नजारे देखकर मन प्रसन्न हो गया । नैनीताल रोशनी से नहा उठा । सबसे पहले हमने नैना देवी के दर्शन किए ।दर्शन करके निकले और जैसे ही पहाड़ों की तरफ देखा चारों तरफ बिजली के बल्ब टिमटिमा रहे थे । पहाड़ों के ऊपर नीचे से देखने पर लगता है कि किस तरह माचिस के डिब्बे की तरह एक इमारत के ऊपर दूसरी इमारत जमी हुई थी

यात्रा की तैयारियां
नैनीताल Nainital बहुत सालों पहले एक बार गया था । लेकिन तब की स्मृतियां कुछ धूमिल सी हो रही थी । परिवार सहित यात्रा करना थी तो सोचा क्यों ना फिर से नैनीताल को एक्सप्लोर किया जाए.
उत्तराखंड Uttarakhand में कई हिल स्टेशन Hill station है ।जिनमें Mussoorie Lansdowne और Nainital प्रमुख है. उत्तराखंड के Dehradun और मसूरी के लिए दिल्ली से एक अलग रास्ता जाता है ।
जबकि नैनीताल और लैंसडाउन के लिए काठगोदाम की तरफ दूसरा . यह दोनों एक ही राज्य में लेकिन दोनों की ही दूरी दिल्ली से लगभग 300 से 350 के बीच पड़ती है. रास्ते को समझे तो दिल्ली उल्टे v के पॉइंट पर है और v की एक आर्म काठगोदाम जाती है तो दूसरी देहरादून को .
दिल्ली से नैनीताल जाने के लिए Kathgodam तक रेलवे लाइन है । काठगोदाम से ऊपर मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर नैनीताल ,भीमताल Bheemtal , 60 किलोमीटर की दूरी पर रानीखेत Ranikhet लगभग इतना ही अल्मोड़ा Almora और मुक्तेश्वर Mukteshvar पड़ते हैं.
किसी भी ट्रैवलर Travelers को यदि इतने सारे नाम एक साथ बता दिये जाए तो निश्चित रूप से उसका मन होगा कि इन सभी टूरिस्ट प्लेसेस को एक ही बार में देखकर आया जाए. हम हिंदुस्तान ( Indian ) के पर्यटकों Tourist की यह आदत है कि हम एक बार में ही सारे टूरिस्ट पॉइंट नाप लेना चाहते है ।
Nainital कब जाएँ
जिससे कि टूर का मजा भी लिया जाए और भागम भाग भी ना हो . पहाड़ों पर जाने का उचित समय अक्टूबर माह होता है । जानकार लोग कहते हैं कि जब यहां से बारिश बिदा हो रही होती है ,चारों तरफ हरियाली बिछी होती है , ठंड उतनी नहीं गिरती जितनी नवंबर के बाद गिरती है .
हर लिहाज से यह मौसम टूरिस्ट्स के लिए अनुकूल होता है । न केवल पर्यटकों के लिए बल्कि उनकी जेब के अनुकूल भी हो जाता है । इस समय पर्यटकों का आवागमन कम होने से होटल ,टैक्सी आदि रीजनेबल रेट में मिल जाती है.
हमारी यात्रा कैसे शुरू हुई
अक्टूबर की कोई 6 तारीख रही होगी हमने यहां से दिल्ली तक का सफर इंदौर नई दिल्ली इंटरसिटी Intercity से किया सुबह वहां पहुंचे. दिल्ली में आजकल घंटे से होटल बुक होने लगे हैं । पहाड़गंज रेलवे स्टेशन के आसपास किसी भी ऐप से जाकर बुक कर सकते हैं । हमने 3 घंटे के लिए तीन कमरे बुक किये ।
बहुत ही रीजनेबल खर्च हुआ और हम वहां पर रुक कर स्नान आदि से निवृत होकर इनोवा करके वहां से निकल पड़े नैनीताल के लिए. टैक्सी वाले मालिक मित्तल जी थे । बहुत ही मजाकिया और जिंदा दिल इंसान उन्होंने हमारे सफर को खूबसूरत बना दिया। टैक्सी में दिल्ली से गुजरना ही अपने आप में सुखद एहसास दे जाता है । सीमेंट कंक्रीट के जंगल ऊंची - ऊंची इमारतें , मार्केट आदि को देखते हुए हम लगभग सुबह 11 बजे के आसपास दिल्ली पार कर गए.
दिल्ली से आगे निकल कर रास्ते मे मुरादाबाद ,रामपुर जैसे शहर आते है । इसके बाद हल्द्वानी और हल्द्वानी से काठगोदाम. कुछ टैक्सी वाले हल्द्वानी और काठगोदाम को बाय पास करके जिम कॉर्बेट पार्क से होकर नैनीताल पहुंचा देते हैं .
हमारे टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि जिम कॉर्बेट होकर चलिए आपको जंगल सफारी मुफ्त में मिलेगी . आमतौर पर टूरिस्ट लोग टैक्सी वाले की बात में आ जाते हैं ।
हमने जिम कॉर्बेट वाला मार्ग ही चुन लिया बीच मे रास्ता खराब निकला। इस कारण हम शाम 5:00 बजे नैनीताल पहुंचने की बजाय शाम की 7:00 बजे पँहुचे .होटल में चेकइन किया फ्रेश होकर नैनी झील देखने निकल पड़े.
होटल झील के लगभग पास ही था ।बस 500 मीटर की दूरी पर । पैदल-पैदल रात में नैनी झील के नजारे देखकर मन प्रसन्न हो गया । रात में नैनीताल रोशनी से नहा उठा । सबसे पहले हमने नैना देवी के दर्शन किए ।दर्शन करके निकले और जैसे ही पहाड़ों की तरफ देखा चारों तरफ बिजली के बल्ब टिमटिमा रहे थे ।
पहाड़ों के ऊपर नीचे से देखने पर लगता है कि किस तरह माचिस के डिब्बे की तरह एक इमारत के ऊपर दूसरी इमारत जमी हुई थी । बहुत ही मनोरम दृश्य था । झील के किनारे घूमते घूमते आनंदित होते ,खाने का एक अच्छा होटल ढूंढा । जमकर खाना खाया और रात में आकर सो गए। महिलाओं ने शॉपिंग का शौक भी पूरा किया।
Kainchi dham and Ranikhet
अगले दिन के लिए हमने पहले ही टैक्सी बुक कर रही थी । टैक्सी को हमको कैंची धाम , रानीखेत घुमा कर वापस रात में 2 दिन के लिए जो रिसोर्ट में हमने हरियाल विलेज में बुक किया था वहां छोड़ना था ।सुबह लगभग 8 बजे हम लोग तैयार होकर टैक्सी लेकर रवाना हो गए .
कुछ ही देर में पहाड़ों से उतरना चढ़ना चालू हो गया । कभी ऊंचाई चढ़ते कभी उतरते। एक तरफ सड़क दूसरी तरफ गहरी खाई साथ चलती थी । देवदारू और पाइन के घने जंगलों के दर्शन भी हो रहे थे । यहां आने पर आप जिम कॉर्बेट अभ्यारण का अवलोकन भी कर सकते हैं लेकिन इसको एक्सप्लोर करने के लिए दो से तीन लगते हैं .
जिम कॉर्बेट रिजर्व
इसका नाम एक अंग्रेज जिम कॉर्बेट Jim Corbett के नाम रखा है जो पर्यावरण से जुड़े हुए थे और उन्होंने एक किताब Man -Eaters of kumaon लिखी है.जिसमें वर्णित है कि किस तरह एक खूंखार आदमखोर टाइगर का शिकार उन्होंने किया । इस पर एक डॉक्यूमेंट्री डिस्कवरी चैनल Discovery Channel पर पर देखने को मिल सकती है ।
हमारी ट्रैवल लिस्ट में अल्मोड़ा ,जिम कॉर्बेट, लैंसडाउन ,मुक्तेश्वर आदि शामिल नहीं थे तो हमने नैनीताल से निकलकर सीधे कैंची धाम की ओर रुख किया। घन्टा दो घंटा वहां बाबा की शरण में रुके , उनसे आशीर्वाद लिया और आगे रानीखेत की ओर बढ़ गए।
बिच्छू घास की सब्जी
रानीखेत के रास्ते में हमने अपने ड्राइवर से कहा कि कोई कुमाऊं खाने की होटल हो तो हमें क्षेत्रीय भोजन का स्वाद चखाये । वाहन चालक उत्साहित हो गया और रास्ते में बिल्कुल एक पहाड़ के किनारे पर बने हुए छोटे से ढाबे में गाड़ी रोक दी . वहां के लोकल ढाबे वाले से कुमाउनी भाषा में उसने कुछ बातचीत की .
बाद में उसने बताया कि यहां पर हम आपको बिच्छू घास की सब्जी , लोकल मोटे अनाज की रोटी और स्थानीय दाल खिलाते हैं ।जिससे आप यहां के खाने के कल्चर को समझ सकेंगे ।
भूख लगी थी जैसे ही खाना सामने आया हम सभी लोग टूट पड़े । जैसा कहा था उससे कहीं ज्यादा अच्छा हमें स्थानीय भोजन लगा . उस ढाबे की बनाई हुई चटनी तो हमारी श्रीमतियां अपने साथ लेकर आई ।
अब हम रानीखेत की तरफ निकल गए । यह कैंची धाम से करीब 40 किलोमीटर पहाड़ों में है । लगभग 3 बजे के आसपास रानीखेत पहुंचे। रानीखेत पूरी तरह से सेना के नियंत्रण में है और कैंटोनमेंट बोर्ड का हिस्सा है। कई स्थान पर वहां पर जाना रिस्ट्रिक्टेड है .
अंग्रेजों के जमाने में बनी हुई छावनी आज भी उसी तरह मौजूद है । अंग्रेजी स्थापत्य कला के भवनों में आज सेना के कार्यालय लगते हैं उनके रहने के लिए शानदार भवन बने हुए हैं।
लंबे चौड़े खुले मैदानो में गोल्फ कोर्ट भी हमने देखा । पहाड़ों की आधी धूप आदि छांव में हमने फोटोग्राफी भी जम के की । शाम उतरने वाली थी और हमें अपने नए डेस्टिनेशन की ओर जाना था सो चाय पानी करके वापस रवानगी डाल दी ।
Haryal 360
कहीं भी जाने के पहले हम उस स्थान की रिसर्च करते हैं । इस खोज में नैनीताल में झील के अलावा सबसे ऊंची चोटी पर बने एक रिसॉर्ट के बारे में जानकारी मिली .
यह रिजॉर्ट नैनीताल झील से 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर है .रिसोर्ट मालिक से बातचीत हुई और हमने तीन कॉटेज दो रात तीन दिन के लिए बुक कर ली थी .
वापसी के सफर में शाम हो गई थी . नैनीताल वापस आते आते लगभग रात हो गई थी. हम नैनीताल झील के किनारे किनारे होकर फिर से ऊपर चढ़ने लगे . धीरे-धीरे ऊपर जा रहे थे , हमें लगने लगा कि कब रास्ता खत्म हो ।
पैंगोट नामक एक जगह पर जाना था . जहां से टैक्सी छोड़कर और ऊपर चढ़ना था । बीच में टैक्सी ड्राइवर ने एक जगह गाड़ी खड़ी कर दी और कहां की यहां से देखीये नैनी झील कैसे दिख रही है
हम सभी लोग रात में सकरी सड़क के किनारे काफी ऊंचाई पर थे . एक पुलिया के पास जाकर हमने नीचे नैनीताल को देखा .चारों तरफ रोशनी और बीच में पानी . विशाल झील बहुत छोटे आकार में दिख रही थी और अत्यधिक आकर्षक लग रही थी । रात में पहाड़ चढ़ना भी एक चुनौती भरा काम होता है .
हम 6 लोग एक ड्राइवर के भरोसे है जहां आसपास कुछ ज्यादा विजन नहीं था ऊपर की चढ़ाई चढ़ते जा रहे थे. मन में भय तो था ही। लेकिन असली चुनौती तो अभी आना शेष थी ।
पेंगोट के आगे जाकर एक मोड़ पर हमारी टैक्सी रुक गई .टैक्सी से सामान उतरने लगा आसपास केवल एक दो मकान थे । हमें लगा यही कहीं रिजॉर्ट होगा लेकिन अभी रिसोर्ट आया नहीं था ।
रात के 9:00 बज रहे थे . थोड़ी देर में महिंद्रा की एक पुरानी सी जीप लेकर पकी हुई उम्र के व्यक्ति सामने आ गए.सामान जीप में पीछे रख दिया गया .
बताया गया कि यह फोर व्हील जीप है और ऊपर की चढ़ाई इसी जीप से चढ़ सकते हैं। झटके से जीप आगे बढ़ी और खड़ी चढ़ाई सामने थी.
कच्चा रास्ता , गाड़ी का इंजन घर-घरा कर ऊपर का सफर तय कर रहा था जैसे-जैसे चढ़ाई बढ़ रही थी हमारी सांसे फूलने लगी. पता नहीं कितने ऊपर और जाना है।
आधी चढ़ाई हुई थी कि एक स्थान पर थोड़ा पीछे हो कर जीप ने टर्न लिया सांस रुक गई , पीछे खाई थी . फर्स्ट गियर लगाकर गाड़ी रेंगने लगी . राम राम कर ऊपर पहुंचे ।
रात के लगभग 10 बजे होंगे हमने चेक इन किया . रिसोर्ट में कोई 10 कॉटेज थी .नीचे एक लान था साइड में किचन और डाइनिंग हॉल था . एक छोटा सा ऑफिस भी था ।
काफी ठंड थी मौसम के हिसाब से हम अपने साथ कुछ गर्म कपड़े ले गए थे रूम में जाकर चेंज किया और नीचे आकर डाइनिंग हॉल में बैठ गए .वहां के केयरटेकर तीन चार लड़के दिख रहे थे .
उन्होंने फटाफट हमारे लिए चाय का इंतजाम किया .डिनर कर रात के लगभग 12 बजे सभी लोग सो गए । हम नैनीताल के सबसे टॉप शिखर पर थे अंधेरा था इसलिए आसपास कुछ नजर नहीं आ रहा था .
जैसे ही सुबह हुई हम बाहर निकले प्रकृति का एक अद्भुत नजारा सामने था । एक तरफ देवदार के घने वृक्ष का जंगल दूसरी ओर खाई , ऊंचे ऊंचे पहाड़ की चोटियां सामने थी और ठीक सामने बर्फ से लदी हिमालय की चोटिया नजर आ रही थी।
हम सभी लोगों ने एक स्वर में कहा कि इतना सुंदर नजारा जीवन में हमने इससे पहले किसी भी पहाड़ पर नहीं देखा। इससे पहले ऐसी सुबह किसी पहाड़ पर हमने ना देखी ना महसूस की। यह था हरियाल 360 डिग्री का जादू जो सर चढ़कर बोल रहा था।.
हमें एक रात और यहां स्टे करना था . इसलिए दोपहर 11:00 बजे स्नान आदि से निवृत होकर नीचे की तरफ जाने लगे तो वहां के केयरटेकर ने कहा कि साहब जीप के बजाय पैदल यात्रा करेंगे तो ज्यादा आनंद आएगा . पैदल पहाड़ उतरना ? लगभग सभी लोग साठ की उम्र के ऊपर थे . फिर भी मित्रों ने कहा कि चलो देखते हैं .
उतरने लगे ..पगडंडी सुरक्षित थी हालांकि साइड में खाई साथ-साथ चल रही थी .कोई 30 मिनट लगे होंगे हमें ऊपर से नीचे उतरने में बीच-बीच में हंसी मजाक और वीडियो बनाते जा रहे थे और धीरे-धीरे नीचे उतरकर सड़क तक पहुंच गए.
यह वही सड़क थी जिससे थोड़ी दूर पर हमने जीप से चढ़ाई की थी। प्रकृति के इतने निकट होकर और जंगलों से बीच गुजरकर नीचे उतरने ने हमें आनंदित कर दिया । नीचे टैक्सी इंतजार कर रही थी . फिर हम नैनीताल गए .
फिर नैना देवी के दर्शन किए, नैनीताल झील में बोटिंग की और अच्छी तरह से नैनीताल के आसपास के मार्केट को एक्सप्लोर करके फिर फोर व्हील जीप से हरियाल 360 जाकर रूक गए .
हरियाल 360 डिग्री में दूसरे दिन की रात फिर से आनंद से गुजारने के लिए हम शाम 7:00 बजे से ही अपने रिजॉर्ट पर आ गए थे . रिजोर्आट के आसपास के जंगलों से होकर गुजरे, रिलैक्स किया लॉन में बैठकर चाय का लुत्फ़ लिया .
शाम को घर लोट रहे पक्षियों का कलरव सुना । सुबह रवानगी का टाइम आ गया था . हरियाल के इस रिजॉर्ट को छोड़ने का मन नहीं हो रहा था .लेकिन यात्राएं होती ही ऐसी है . यात्राओं में जाने के पहले ही लौटने का समय नियत होता है .
नियत समय के चलते हम लोग पहाड़ से नीचे उतरे, काठगोदाम तक टैक्सी से आए. यहां से शताब्दी एक्सप्रेस से दिल्ली और दिल्ली से इंदौर नई दिल्ली इंटरसिटी से उज्जैन पहुंच गए ।
सच कहूं तो आज तक जितने भी हिल स्टेशनों की यात्रा की है उनमें सबसे सुखद, सुंदर व शांत मुझे नैनीताल लगा है. मुझे ही नहीं मेरे मित्रों मनोहर सोनी, अंगद सिंह राठोर और हम तीनों की पत्नियों की भी यही राय थी ।
सभी सोच रहे थे कि एक बार और अवसर मिला तो फिर से हरियाल जाकर नाइट स्टे करेंगे . लेकिन कई बार ऐसा होता नही . नैनीताल की यात्रा प्रसन्नता देने वाली है .हर एक पर्यटन प्रेमी को यहां एक बार जाना चाहिए .....
article written by harishankar shrama
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