रामाजी  रइ  ग्या ने रेल चली गई  , टेपा  और  रामाजी  में  क्या  अंतर  है ?

 रेल भोपाल तरफ जाएगा के नागदा आड़ी जाएगा . पूरी खात्री करके ही ट्रेन के डब्बे में  बैठते  थे फिर भी कई बार  सहयात्री  कंफ्यूज कर  देते  तो नागदा की बजाय फतेहाबाद पहुंच जाते

Apr 6, 2024 - 11:33
Apr 6, 2024 - 11:45
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रामाजी  रइ  ग्या ने रेल चली गई  , टेपा  और  रामाजी  में  क्या  अंतर  है ?

      एम  पी  के मालवांचल में एक कहावत  प्रसिद्द   है रामाजी रई गया ने  रेल  चली  गई .  भोले भोले ग्रामीण के के ऊपर कभी  यह  व्यंग स्वरूप कहीं कहा गया होगा जो प्रचलन में आ गया . रामा जी ठेठ गांव क्षेत्र से आते थे . साफा फेटा बांधते थे और कुली  से लेकर गार्ड  तक से पूछते  की रेल कहां जाएगी . वहां भी संतोष नहीं हुआ तो सवारी  से भी पूछ लेते थे की  रेल भोपाल तरफ जाएगा के नागदा आड़ी जाएगा . पूरी खात्री करके ही ट्रेन के डब्बे में  बैठते  थे फिर भी कई बार  सहयात्री  कंफ्यूज कर  देते  तो नागदा की बजाय फतेहाबाद पहुंच जाते . रामाजी खुश मिजाज भी इतने हुआ करते  कि इन सब गलतियों को हंसकर टाल देते थे और अपनी मुर्खता  को अन्य लोगों को  ओटले  पर  बैठ  कर  बता कर खुद भी उनमें शामिल हो खूब हंसते थे । वैसे  रामाजी आज भी  पाए जाते  है  वेशभूषा  बदल गयी  है . कमोवेश इसीलिए ग्रामीण क्षेत्र में हास्य -व्यंग्य और एक दूसरे की छीला- छाली का काम निरंतर चलता रहता था जिसके कारण उनकी ख़ुशी ही  अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घजीवन का कारण बनती थी । 

    रामाजी और रेल का जुमला कब बना होगा यह तो कोई ऐतिहासिक तथ्य  की बात नहीं है . लेकिन हो सकता है 40 -50 के दशक में जिन लोगों ने रेल नहीं देखी थी उनमें अधिकांश   कहीं भी जाने को लेकर  डर जाते थे .किस तरह जाऊंगा ने  का से   रेल पकड़ना है नेकनी ठेशन  पर उतरनों है  या कुन बताय्गो   .  सब एक दो महीने की तैयारी करने  के बाद ही समान की  पोटल सर पर  धरके घर से निकलते थे . यदि गंतव्य स्थान की  एक  ही सीधी ट्रेन मिल जाती तो  गंगा नहाए . ज्यादातर लोग हरिद्वार और बद्रीनाथ की यात्राएं करते थे .  चार धाम की यात्रा  तो  उनके अकेले  के  बस की  थी  नहीं इसलिए तीर्थयात्रा  की  मोटर से  ही करना पड़ती थी .

      टेपा  और रामा जी में क्या अंतर है

         1 अप्रैल को मूर्ख दिवस के अवसर पर उज्जैन  के प्रतिष्ठित  व्यंगकार  एवं प्रोफेसर डॉक्टर शिव शर्मा ने  टेपा सम्मेलन आयोजित करने की शुरुआत की जो आज भी  जारी है . डॉक्टर शिव शर्मा का तो देहांत हो गया लेकिन उनके पुत्र मनीष शर्मा अब इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं .

   मालवा में रामा जी और टेपों  के  किस्से  बड़े चाव से चटकारे लेकर सुने सुनाये जाते हैं . अब प्रश्न  उठता है कि टेपा  और रामाजी में अंतर क्या है . अपनी बुद्धि से यदि सोचें तो पाते हैं कि रामाजी तो ठेठ गांव के रहने वाले थे .  मूर्ख नहीं थे भोले- भाले थे .  लेकिन टेपा  नामक प्राणी अधिकतर शहरी क्षेत्र में पाया जाता है.  अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोगों में भी कुछ  टेपापन रहता है और गाये  बगाहे   यह मूर्खता के रूप में प्रकट हो जाता है । रामाजी की वेशभूषा धोती - बंडी साफा  पगड़ी हुआ करती थी .लेकिन टेपा बढ़िया सुटेड बूटेड  या कुर्ते पजामे वाले होते हैं . ऊपर से कहीं नहीं लगता कि उनके अंदर मूर्खता छुपी है . लेकिन छिपी हुई मूर्खता रुकती नहीं है , असमय  खुद ब  खुद  सामने आ जाती है टपक  जाती  है । इसे कुछ उदाहरण से समझ  सकते  है . 

      हमारे मित्रों के ग्रुप में सब पढ़े-लिखे लोग हैं अच्छे  पदों पर कार्यरत रहे हैं .  लेकिन है खालिस मालवी टेपे .  गलतियां टपकाते देर नहीं करते.  एक महाशय तो टेपा  और  रामा जी की ब्लेंडिंग है .  कहीं किसी ट्रेन में बैठने के पहले डब्बे में बैठे  यात्री  से ,  गार्ड  से और ड्राइवर से पूछेंगे ही  लगे  हाथ  कुली  से  भी  तस्दीक क़र लेंगे कि ट्रेन की दिशा उनके  अनुकूल  है .  इसके बाद में भी उनके साथ दो-चार बार चोट हो ही गई.  जाना था मक्सी तरफ  और नागदा की तरफ चल पड़े .  मुश्किल से  नाईखेड़ी स्टेशन पर  कूदे , वहां से टेंपो  पकड़कर उज्जैन आए.  अगली  बात अब  घर  कैसे जाएं . जाना था शुजालपुर किसी शादी समारोह में ट्रेन में हुई गफलत की वजह से 3  घंटा  निकल गया मूड  ऊपर से ख़राब . बोले यार   घर नहीं जाते है   पिक्चर देखकर घर जाएंगे . अभी  जायेंगे  तो घरवाली दो बात और चिपकाएगी  , कैसा  गेलिया  हो ,दो  बेटी का  बाप होइके गलत रेल  में बैठी गया  । इस जहालत से बचने के लिए वह और उनके मित्र पीवीआर में जाकर बैठ गए और चुपचाप  9  बजे  रात को घर पहुंचे .  घर पहुंचते ही  शादी का झूठा विवरण सुना  चैन की नींद सो गए .  अगले दिन तेज पत्नी ने रिश्तेदारों को फोन किया तो पता लगा कि बाबू साब शादी में  पहुंचे ही नहीं .  खूब  जम  कर  महाभारत  मची . 500   रु  पी वी आर  में  अलग दीये .  उसके बाद में भी घर जाकर जूते तो उतने ही खाए । इसको कहते  है  डबल  टेपा

     एक और श्रीमान का किस्सा हाजिर है.  सिविल इंजीनियर है और ताल तलैया बांध बनाने का काम करते हैं . ग्रुप में सोमनाथ दिव  और आसपास के स्थान देखने के लिए निकले . रेल में  बैठकर 2 दिन में सोमनाथ पहुंचे . होटल का कमरा लिया , कमरे के पीछे खिड़की लगी हुई थी . सबसे  पहले  उन्होंने  ही खिड़की खोली  सामने समुद्र के दर्शन हो रहे थे . लेकिन तभी  टेपा  उछलकर  बाहर  कूदा और बोला ओहो   कित्ता   बड़ा तालाब . टेपा क्षण भर के लिए  तालाब और समुद्र में अंतर नहीं कर पाया. इंजिनियर  साहब  हंसी का पात्र बन गए . मालवी  टेपा  होता बड़ा  ओपन माइंड है   तुरंत  स्वीकार  भी  कर लेता है  अपन कां कान्वेंट  में  पड्या हाँ  पानदरीबा   का  स्कूल  में पढई  करी है ,  छोटी मोटी  गलती  चले  .  

 

 

         सहज मूर्खता तो  व्यक्ति में जन्मजात  Inbuilt होती है और दबाई नहीं जा  सकती . मालवी भाषा के टेपो की तो बात ही कुछ और है कदम- कदम पर हंसना उनकी धड़कनों में बसा है । हमारे यहां के प्रसिद्ध कवि स्वर्गीय ओम व्यास ओम ने मालवा के टेपो की हर बारीक से बारीक हरकतों को कविता में पिरोकर पूरे देश में हास्य का डंका बजा दिया । 

          हद तो  तब  है जब रात  12   बजे  आदमी ओटले  पर नेट  लगाकर गर्मी में सो रहा है और सामने से उनका  टेपा मित्र निकल रहा है ,   यहाँ  भी वह टेपई से  चूकता   नहीं है . सब दिख रहा फिर  भी  पूछता है  कई भेरुदा सुई रिया  हो  । भेरुदा खर्राटे ले रहे   थे और भाई ने चलते रस्ते काडी कर दी , अब भेरुदा रात  2:00 बजे तक कदमताल करेंगे  .नींद आने वाली नहीं , टेपे   की  बला से ।

      रामा जी की हरकत और अधिक मासूम होती है .भोले भाले रामाजी भीड़ भरी बस में बैठने के लिए जाते हैं .  कंडक्टर ठूसठूस  के बस भर रहा होता है आगे के  दरवाजे से चडे  रामा जी और पीछे के दरवाजे पंहुच जाते है . कंडक्टर और  पीछे जाओ ,  पीछे जाओ  की  हांक लगता है .  रामाजी स्वविवेक से  निर्णय लेकर बस से  उतरते हैं और छत पर जाकर बैठ जाते हैं . अब बताइए भोलेपन का इससे और क्या बड़ा  उदाहरण होगा कि पीछे जाने को उन्होंने छत‌ समझ लिया ।

    एटीएम नया -नया चला था पास के गांव के मदनलाल जी को बैंक ऑफ़ इंडिया ने एटीएम जारी कर दिया.  घर लेकर आ गए . अपने पढ़े-लिखे भतीजे को आवाज़ लगाई बाबू यहां आ . यार बैंक  ने  ये  पकड़ा  दिया  और  कहा है  इससे  पैसे  निकल जायेंगे . बाबू ने समझाया कि काका साहब बैंक के बहार जो  एटीएम मशीन लगी रहती है न उसमे  इस कार्ड  को डालो और जितने पैसे चाहिए उतना भरो तो निकल आते हैं . मदन लाल जी एकदम उत्साहित हो गए बोले  चल आज निकलई लावा  .  भतीजा बोला  पहला पैसा डालना पड़ेगा फिर  निकलेगा  . मदन लाल जी का उत्साह  एकदम काफूर  हुआ और बोले  फेर  यो  कई  काम  को   

 रामा जी और टेंपो की कथाएं अनंत है और इसका आनंद भी अनंतकाल  तक लिया जाता रहेगा . हर मनुष्य में रामाजी है , टेपा है कब कहां कैसे उजागर होता है बस इसको चिन्हित करना  भर है , मजा लेते  रहिये .

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आलेख    काल्पनिक है   किसी  व्यक्ति  विशेष  से और  न  मुझसे  कोई  सम्बन्ध है .

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Harishankar Sharma State Level Accredited Journalist राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार , 31 वर्षों का कमिटेड पत्रकारिता का अनुभव . सतत समाचार, रिपोर्ट ,आलेख , कॉलम व साहित्यिक लेखन . सकारात्मक एवं उदेश्य्पूर्ण पत्रकारिता के लिए न्यूज़ पोर्टल "www. apni-baat.com " 5 दिसम्बर 2023 से प्रारम्भ . संपर्क apnibaat61@gmail.com "Harishankar sharma " state leval acridiated journalist residing at ujjain mp. .working since 31 years in journalism field . expert in interviews story , novel, poems and script writing . six books runing on Amazon kindle . Editor* news portal* www.apni-baat.com