प्रश्न हिंदू धर्म और सनातन परंपरा के निर्वहन का है . जिसमें दुश्मन को भी माफ करने की बात कही गई है . पृथ्वीराज चौहान चाहता तो आसानी से मोहम्मद गोरी को माफ़ न करता
सनातन में दया उपकार , समानता व क्षमा इसके मूल तत्व है . हम आज भी उसका पालन करते हैं .1000 साल की गुलामी का काला पन्ना सामने आता है , जब पढ़ते हैं तो विचलित हो जाते हैं
प्रश्न हिंदू धर्म और सनातन परंपरा के निर्वहन का है . जिसमें दुश्मन को भी माफ करने की बात कही गई है . पृथ्वीराज चौहान चाहता तो आसानी से मोहम्मद गोरी को माफ़ न करते हुए मार डालता . शायद यह कड़ा निर्णय लिया होता तो आने वाले समय का भारत का इतिहास कुछ और ही होता
सनातन धर्म की परंपराओं में वसुधैव कुटुंबकम की बात कही गई है .दया उपकार , समानता व क्षमा इसके मूल तत्व है . हम आज भी उस परंपरा का पालन करते हैं 1000 साल की गुलामी का काला पन्ना सामने आता है और जब हम पढ़ते हैं तो विचलित हो जाते हैं. मध्यकाल का अध्ययन करने का अवसर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपलब्ध हुआ जिसमें मध्यकाल के इतिहास पर प्रो . आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव की किताब के हार्ड कवर पेज के ठीक अगले पेज पर चेतावनी लिखी हुई है कि यह इतिहास है और इसको इतिहास की तरह पढ़े आज के परिवेश में भावनाओं में बहने की आवश्यकता नहीं है ।
संपूर्ण किताब को पढ़ने के बाद आप हिल जायेंगे . उस दौर में किस तरह हिंदू धर्म ने अपने आप को बचाया होगा इसकी कल्पना आज नही की जा सकती है . । हम और हमारे इतिहासकार और वर्षों से शासन कर रहे शासन के लोग, इतने सहिष्णुता और सनातनी निकले कि आजादी के बाद उन्होंने वास्तविक इतिहास को कूड़ेदान में फेंक दिया . समभाव पर Irfan habib , R c majumdar , Bipnchandra , Romila thapar जैसे साम्यवादी प्रभाव वाले इतिहासकारो से इतिहास का पुनर्लेखन करवाया . यही नही तय किया कि पाकिस्तान में बसे हुए मोहम्मद गौरी के अनुयायी माफ करने के लायक है . वहां के आतंकवादी और कश्मीर में रह रहे उनके समर्थक आतंकवादियों को हमने निरंतर इसी भावना के साथ बिरयानी खिलाई. वे बड़े से बड़ा बमकांड करते रहे और हम जवाब में केवल डोसियर भेज कर या एक स्टेटमेंट जारी करके इतिश्री करते रहे ।
आधुनिक भारतीय इतिहास में गौरव के क्षणों को याद करें तो 1971 की लड़ाई में बांग्लादेश के बनने , 2014 के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट पर हमें गर्व करने के कुल जमा तीन अवसर ही मिलते हैं । आज भी मन में आता है कि क्या सनातन धर्म आत्म रक्षा में दुश्मन को मिटाने की बजाय उसको माफ करने के निर्देश देता है या हमने अपनी ओर से अपनी कायरता की रक्षा करने के लिए इस तरह की व्याख्या गढ़ ली । पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जैसे सनातनी लोग इसी बात को शहर -शहर जाकर कह रहे हैं समझा रहे हैं .अच्छी बात है लोग समझ भी रहे है ।
काफिरों को सबक सिखाने का उपक्रम तो 1001 से हो रहा है
मध्यकाल की शुरुआत के समय में भारतीय इतिहास को बदलने वाली दो घटनाएं हुई .दोनों घटनाओं के बीच लगभग 91 वर्षों का अंतर रहा लेकिन दोनों ही घटना की एक ही थीम थी . धन की लूट और काफिरों को सबक सिखाना . यहां हम बात कर रहे हैं सन 1001 में अफगानिस्तान के गाँव गजनी से निकलकर आने वाले महमूद गजनवी नाम के एक तुर्क की . जिसका उधेश्य भारत में साम्राज्य स्थापित करना नहीं था वरन यहां के सनातनी हिंदू राजाओं को सबक सिखाते हुए लूटमार करने का था।
महमूद गजनवी ने 1000 घुड़सवारों के साथ भारत में प्रवेश किया . एक-एक करके राजाओं को पराजित कर कत्लेआम मचाते हुए उसने बड़ी लूट -मार की उसके निशाने पर हिंदू मंदिरों थे जहां पर अकूत सम्पदा एकत्रित हो गई थी.
मध्यकाल के इतिहासकारों ने सन 1001 ईस्वी से लेकर उसके 17 हमलो के राजाओं से उसका युद्ध का कोई विस्तार से विवरण नहीं दिया है . कोई भी राजा इतिहास प्रसिद्द नहीं था . भारतीय राजाओं के महमूद गजनवी से हारने के कारण की समीक्षा करते हुए बताया गया है कि यहां के राजा घोड़े की काठी के दोनों ओर रस्सी में गठान लगाकर उस पर खड़े हो कर तलवार से युद्ध करते थे . महमूद गजनी एक नवीन अविष्कार लोहे की रकाब के साथ आया .उसने काठी के दोनों और रस्सी में रकाब लगा दिए जिन पर खड़े होकर उसके सैनिक अधिक कुशलता से तलवारबाजी कर लड़े और जीते. इतने छोटे से आविष्कार ने हिंदुस्तान को हरा दिया , गुलामी की ओर धकेल दिया .
यहां के हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ करते हुए राजाओं से हीरे जवाहरात , सोना इकट्ठा करके घोड़े पर लाद कर गजनी वापस हो गया . तब हमारे सोमनाथ जैसे बड़े मंदिरों में सुरक्षा के कोई साधन नहीं थे .पुजारी पंडित मंदिर में बैठकर प्रार्थना करने लगे उन्हें लगा कि भगवान आकर ही गजनवी से लड़ेंगे और उसे परास्त कर देंगे. ऐसा कुछ हुआ नहीं यहां तक की नफरत से भरा हुआ महमूद गजनवी सोमनाथ के शिवलिंग को भी उखाड़ कर अपने साथ ले गया , वहां जाकर मूर्ति के टुकड़े टुकड़े कर उनको गजनी की मस्जिद के बाहर पैरदान पर पटक दिया . यही नहीं कसाइयों को उस मूर्ति के टुकड़ों के बाट बनाकर दे दिए .
Prithviraj chohan व Mohammad ghori
अब आते हैं 1190 से लेकर 1191 के तराइन युद्ध व मोहम्मद गौरी की दूसरी घटना पर . गौरी भी अफगानिस्तान घोर से यहां आया . यहां पर उसके लिए सबसे बड़ी बाधा खड़ी की अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने . पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को 6 बार हराया . हर बार हिंदू और सनातनी परम्परा - दया , करुणा ,क्षमा का पालन करते हुए अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को माफ कर दिया, जिंदा छोड़ दिया .अंतिम बार इतिहास के धोखेबाज जयचंद की मदद से पृथ्वीराज चौहान परास्त हुआ. मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को मौका नहीं दिया .वह उन्हें पड़कर गोरी ले गया और वहां उनकी हत्या कर दी गई. पृथ्वीराज रासो नामक काव्य लिखने वाले चंदवरदाई ने समूचे घटनाक्रम का बहुत ही रोचक ढंग से विवरण प्रस्तुत किया है कि किस तरह गोरी की भी मौत नेत्रहीन कर दिए गए पृथ्वीराज चौहान के हाथों तीर लगने से हुई .
मध्यकाल में 1191-92 से 1857 तक के भारत का इतिहास कलुषित रहा . मोहम्मद गोरी अपने एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को यहां का शासन सोंपकर वापस अफगानिस्तान चला गया . एक के बाद एक मुस्लिम शासको के वंश आते रहे जिनमें तुगलक, खिलजी , सूरी व मुगल आदि शामिल है . मुस्लिम शासन का अंत अंग्रेजों के हाथों उनके अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर को हटाकर 1857 में सत्ता हथियाने से हुआ .
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