जन आंदोलन से उभरे लोकप्रिय नेता का असफल होना स्वप्न टूटने जैसा है , एक मसीहा और ख़ारिज हुआ
जन आंदोलन से ऐसे नेता उभर कर आते हैं जो लोगों के मन में मसीहा God father की छवि बना लेते हैं , आइये जानते है अरविन्द केजरीवाल जैसे अन्य गॉड fathers के बारे में
लोकतंत्र की महिमा न्यारी है. यहां पर कई बार जमी जमाई व्यवस्थाओं के विपरीत जन आंदोलन से ऐसे नेता उभर कर आते हैं जो लोगों के मन में मसीहा God father की छवि बना लेते हैं .लंबे समय तक कुप्रबंध व भ्रष्टाचार Curruption से तंग हो कर जनता एक ऐसे व्यक्ति की तलाश करती है जो उन्हें एक ऐसे लोक में ले जाएगा जहां भ्रष्टाचार ना हो , आतंक न हो , समान अवसरों के साथ रोजगार मिले . गरीबों को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव सहायता शासन से मिले .कुछ इसी तरह की भावनाओं के वशीभूत होकर यदि किसी व्यक्ति में ईमानदारी की चमक दिखती है तो लोग उसके पीछे हो जाते हैं .लेकिन भारतीय लोकतंत्र का लंबा इतिहास बताता है कि जब-जब उन्होंने किसी मसीहा को सर पर बिठाया है बाद के समय में जनता को निराश होना पड़ा ।
भारतीय राजनीति के मसीहा की लिस्ट में सबसे पहले नाम समग्र क्रांति के जनक जय प्रकाश नारायण का लिया जा सकता है . जिनकी एक आवाज पर पूरा हिंदुस्तान उठ खड़ा हुआ था और इंदिरा जी के आपातकाल के अत्याचारों के विरुद्ध हो गया था . 1977 में इंदिरा सरकार को उखाड़ फेंका था लेकिन जनता पार्टी की आपस की कलह और बंदर बांट से इस स्वप्न के टूटने में देर नहीं लगी , जनता निराश हो गई और फिर से Indira Gandhi की शरण में गई.
इंदिरा गांधी का अंतिम कार्यकाल भी अत्यंत ही संघर्ष पूर्ण रहा स्वर्णमंदिर पर कार्यवाही के बाद आतंकवादियों के हाथों उनकी मृत्यु के बाद जैसे ही सुंदर सलोने राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया तो लोगों को लगा देश का भाग्य पलटने वाला है। इसी बीच उन्हीं के मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते हुए सरकार से हट गए और चारों तरफ भारत में भ्रष्टाचार मुक्त शासन और सुशासन की लहर दौड़ा कर खुद को प्रस्तुत कर दिया . जनता तो मानो पागल ही थी . जो भी ईमानदारी का रास्ता दिखाता है वह उसकी तरफ हो लेती है । विश्वनाथ प्रताप सिंह अपने अल्प कार्यकाल में अत्यंत असफल प्रधानमंत्री साबित हुए . असफलता को छुपाने के लिए उन्होंने भारतीय जनमानस में तोड़फोड़ कर मंडल कमिशन की रिपोर्ट लागू कर दी . वे ऐसा घाव दे गए जो आज तक नहीं भरा जा सका . उन्ही की तर्ज पर वोट और सत्ता के आकांक्षी नेता सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर तोड़फोड़ की नई नई स्कीम लेकर आते रहते हैं . विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ भारतीय लोकतंत्र में वोटर्स ने जिस तरह का सपना देखा वो कम समय में ही टूट गया .
क्षेत्रीय स्तर पर असम गण परिषद ने भी इसी तरह ईमानदारी से सत्ता चलाने की लहर पैदा करके असम में अपनी सरकार बनाई. प्रफुल्ल कुमार महंत भी अत्यंत ही कम समय में अपनी चमक खो बैठे और राजनीतिक के गलियारे में कहीं खो गए।
छः वर्ष की अटल बिहारी वाजपेई की सरकार हटते ही दो टर्म में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने .गठबंधन सरकार चलाने के लिए उन्हें कई तरह के दलों से समझौता करना पड़ा . दक्षिण की पार्टियों ने इतना गदर मचाया की भारतीय जनता भ्रष्टाचार के Scames से पीड़ित होकर कराह उठी . इस अवसर का लाभ उठाकर India against corruption नामक संस्था बनी. भ्रष्टाचार का महाराष्ट्र में विरोध करने वाले Anna Hazare को दिल्ली बुलाया गया. उनकी गांधी टोपी और वेशभूषा का उपयोग करके उस समय केजरीवाल और उनके चेले चपाटी भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने के देवता बनकर सामने आए।
याद कीजिए दिल्ली के जंतर मंतर और वोट क्लब की का जहां पर भ्रष्टाचार मिटाने के लिए IT वाले नई उम्र के युवा इस लड़ाई में कूद गए .उस समय बड़े बालों वाले और गिटार बजाते लड़के - लड़की Lokpal – Lokpal की धुन पर जंतर- मंतर और वोट क्लब में थिरक रहे थे ।
झाड़ू वाले जो चुनाव प्रचार में कहा करते थे कि हम बड़े बंगले में नहीं जाएंगे , बड़ी गाड़ियों से नहीं चलेंगे वही लोग कुछ दिनों बाद बड़े-बड़े बंगलो में शिफ्ट होते नजर आए और बड़ी-बड़ी SUV में घूमते हुए दिखे . जनता को पहला झटका यहीं से लगा . Delhi me सरकार बनते ही सबसे पहले श्रीमान Arvind Kejarival ने अपने ही लोगों के पिछवाड़े लात मार दी . Kumar Vishvas जैसे लोकप्रिय कवि आज भी उस अपमान और धक्के को भूल नही पा रहे है .
राजनीति कितनी अवसरवादी होती है यह इसी से देखा जा सकता है कि जिस कांग्रेस के खिलाफ झाड़ू वाले पानी पी पी कर बोट क्लब व जंतर - मंतर में गलिया रहे थे , जेल संकट के कारण उसी जंतर -मंतर पर साथ बैठे धरना देते दिख रहे हैं .
आए थे हरि भजन को औटन लगे कपास की तर्ज पर जो लोग भ्रष्टाचार दूर कर शुचिता के साथ सत्ता संचालन का वादा करके आए थे वे भी उसी रंग में रंग कर लालू -राबड़ी की तरह सत्ता हस्तान्तरण का खेल खेलने को तत्पर है . कुछ फर्क नहीं पड़ा . बस जनता का एक सपना और टूटा , एक मसीहा और ख़ारिज हुआ . भारत की जनता भावुक है जब भी कोई फिर नया मसीहा आएगा तो पुराने ठगों को भूल कर उसके पीछे हो लेगी . ……
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