Heritage five toy trains in india , कंहाँ से कहाँ चलती है कैसे होगी बुकिंग
यह यात्रा महज यात्रा नहीं होती है बल्कि प्रकृति से सीधा साक्षात्कार करवाती है

1757 के प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना कब्जा कर लिया .रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में लड़ी गई इस लड़ाई में बंगाल के नवाब सिराजुद्दोला की हार हुई इस लड़ाई के खलनायक मीरजाफर का नाम आज भी जन जन पे प्रचलित है . तबका बंगाल वर्तमान बांग्लादेश, वर्तमान पश्चिम बंगाल और बिहार के क्षेत्र को मिलाकर था . इतने बड़े भूखंड पर कब्जा करने के बाद अंग्रेजों ने धीरे-धीरे समूचे भारत में अपने पैर प्रसार करना शुरू किया और आगामी 100 साल में लगभग सभी देशी रियासतें , नेपाल और बर्मा का क्षेत्र अंग्रेजों के यूनियन जैक ( झंडा ) के तले आ चुका था .शासन चलाने के लिए बड़ी संख्या में ब्रिटिश अधिकारी यहां रहने लगे .यहां का वातावरण और गर्मी उन्हें बहुत परेशान करती थी. इसी कारण जितने भी गवर्नर जनरल और राज्यों के गवर्नर थे उन्होंने भारत में ठन्डे स्थान की खोज शुरू की .और इसी खोज के कारन आज भारत के लगभग हर क्षेत्र में हिल स्टेशन दिखाई पड़ते हैं . मार्च से लेकर सितंबर अक्टूबर तक भारत की भीषण गर्मी से बचने के लिए अंग्रेज हिल स्टेशन पर जाकर रुका करते थे .यही कारण है कि हर हिल स्टेशन का चरित्र और स्थापत्य पर अंग्रेजी प्रभाव देखा जा सकता है. कई स्थानों के नाम आज भी जैसे डलहोजी , मकलोडगंज , लेंसडाउन आदि इनको स्थापित करने वालो अंग्रेजो के नाम पर ही है . ब्रिटिश हुकूमत ने ने पहाड़ो पर इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया आवागमन के साधन के लिए हर संभव उपाय किये . इन्हीं उपायों में से एक है पहाड़ो में नेरो गेज रेलवे लाइन बिछाना .
हिमाचल में कालका से शिमला और पठानकोट से जोगिन्दर नगर तक की खिलौना ट्रेन लाइन पर आज भी कुशलतापूर्वक रेल का संचालन होता है . बड़ी संख्या में यात्री इन ट्रेन से ऊपर तक पहुंचते हैं . यह यात्रा महज यात्रा नहीं होती है बल्कि प्रकृति से सीधा साक्षात्कार करवाती है .छोटे-छोटे ऊँचे पुल , टनल और सांप की तरह घूम जाने वाली छोटी-छोटी पटरिया . आज भी ये लोगों को आश्चर्यचकित करती है कि किस तरह और किसी कठिनाई में इन पहाड़ों पर उसे समय रेलवे लाइन बिछाई गई होगी .जब ना तो इतनी भारी मशीनरी हुआ करती थी नहीं इंजीनियरिंग की नई टेक्नोलॉजी.
महाराष्ट्र के मुंबई के पास नेरल से माथेरान तथा तमिलनाडु की नीलगिरी ट्रेंस जो कोयंबटूर के मेटापलयम से ऊटी तक पन्हुचाती है पर्यटकों में खासी लोकप्रिय है . नीलगिरी ट्रेन पर ही शाहरुख खान का फ़िल्मी गीत छैया छैया फिल्माया गया है . यह रेल घने जंगलों झरनों और पहाड़ों में बनाई गई गुफाओ से गुजरकर ऊपर जाती है. न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक जाने वाली टॉय ट्रेन यूनेस्को के हेरिटेज निर्माण सूची में शामिल है . यह ट्रेन राजेश खन्ना और शर्मीला टेगोर की आराधना फिल्म के गीत मेरे सपनो की रानी कब आओगी में दिखाई पड़ती है .. इस लाइन पर विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित स्टेशन घूम बना हुआ है.
भारतीय रेलवे के पितामह के रूप में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी को याद किया जाता है. यह वही डलहौजी हैं जिन्होंने देसी रियासतों ,राज्यों को हड़पने के लिए हड़प नीति लागू की थी. इन्हीं की नीतियों के कारण 1857 में क्रांति हुई थी, जिसको अंग्रेजों द्वारा बलपूर्वक कुचल दिया गया था. लॉर्ड डलहौजी ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के मजबूतीकरण करने के लिए रेलवे लाइन बिछाने का निर्णय नहीं लिया और इन्हीं के समय में सबसे पहली रेल मुंबई से थाने के बीच 1853 में चली थी .
जो भी पर्यटन पर जाते हैं उन्हें हमारे भारत की इन विरासत खिलौना रेल में यात्रा अवश्य करना चाहिए. चाहे समय ज्यादा लगता हो .इनकी गति निश्चित रूप धीमी होती है । खड़ी चढ़ाई चढ़ना किसी रेल के लिए आसान भी तो नहीं होता। नीलगिरी माउंटेन ट्रेन की गति सबसे कम है और सर्वाधिक तेज गति से संचालन शिमला और कालका के बीच होता है . इन रेलों में डीजल इंजन लगाए गए है . दार्जिलिंग हेरिटेज ट्रेन में अभी भी स्टीम इंजन चल रहा है जो अपने आप में सुखद अनुभव देता हैं ।
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