याद है उस फागुन की जब पहली बार मिली थी तुम  Remember that fagun when i met you .....

प्रेम के अंकुर हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी फूटते ही  हैं ।  किशोर से युवा होते होते बसंत और फागुन कुछ अलग ही , सन्दल की तरह  महकते  हैं । दुनिया  स्वप्निल लगती है 

Mar 21, 2024 - 08:14
Mar 21, 2024 - 08:16
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याद है उस फागुन की  जब पहली बार मिली थी तुम  Remember that fagun when i met you  .....

याद है उस फागुन की

जब पहली बार मिली थी तुम 

रंगों में  सराबोर ।

तुम्हारे ऊपर खिले रंग ही देखे थे 

तब तुम्हारा रूप  नही ।

 

तुम्हारी देहयष्टि  से ही  

आकर्षित हो मुड़ा  था मैं 

रंग रूप छोड़  उसी में बंध  गया ।

चुपके से तुमने भी  तो

आंखों से कुछ कहा था ,

 मैंने सुन भी लिया ।

 साहस कर गुलाल लगाने 

आगे  हाथ बढाया था

तुम पीछे हट गई ।  

गुलाल  तो नही लगा पाया 

नयनो की स्वीकृति पर ही  

सन्तोष कर लिया ।

 

कुछ इसी तरह व्यक्त हुआ था

क्षणिक  फागुनी प्रेम 

 

        बात उन दिनों की  है जब  कॉलेज में पढ़ रहे  थे । किशोर से जवानी  की  तरफ कदम बढ़ रहे थे ।मन में कई सपने थे । सपने   हमेशा अपनी  हैसियत  से ऊपर के देखे जाते । सपने पूरे हो या ना हो लेकिन सदैव तात्कालिक सुख देते है   

           यादों का भी एक अलग ही मिजाज होता है .किस लहर पर सवार होकर कहां पहुंच जाएं बता नहीं सकते . मनुष्य का मस्तिष्क जाने कितनी , जाने कैसी  कैसी यादें अपने साथ लेकर चलता है ।   किसी गीतकार ने लिखा है न कि " मेंरे संग -संग आया तेरी यादों का मेला  "    

             प्रेम के अंकुर हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी फूटते ही  हैं ।  किशोर से युवा होते होते बसंत और फागुन कुछ अलग ही , सन्दल की तरह  महकते  हैं । दुनिया  स्वप्निल लगती है 

     किशोर  और युवा  के बीच का यह एक  ऐसा समय होता  है  जो फिर से  जीवन में लौटकर नहीं आता । स्पर्श  ,सानिध्य , आंखों ही आंखों में बातें ,   इशारे होना  , इशारों  का अपने हिसाब से   अर्थ  करना । सब अलग ही दुनिया में पहुंचा देते हैं । 

     उन दिनों साइकिल ब्रांड अगरबत्ती पहले पहल मार्केट में आई थी । सुगंध की खोज में   आजमाया । अगरबत्ती की खुशबू  उन दिनों  भक्ति भाव  की बजाए जवानी की मादकता को ही बढ़ा रही थी । साथ ही   नये -नये   आये पौण्ड्स  साबुन से नहाकर पूरा दिन  महकता  था 

     यह सपने ही थे  जो उस दौरान  जीवन में महके । उनकी स्मृति आज भी  गुदगुदा जाती है । आस-पड़ोस और कॉलेज में रंगीन परिधानों में सजी  परियॉ । कुछ ऐसे लगता कि यदि ये  कही   मिल जाए तो जीवन सफल हो जाए ।  

   पर यह सपने क्षणिक  थे ।  आए और आकर चले गए ।  साथ भी  क्षणिक था , जो पीछे  छूट गया । ऐसा नही है कि कंही कोई  कहानी नही बनी पर अंततः  कदम वापस खींचना पड़े । पुरानी पीढ़ी   हदें  नही तोड़ पायी  दायरे में ही रही   

  

दायरे  से बाहर  नही निकला ,

शर्मीले  हिंदुस्तानी  की  तरह  प्रेम किया ।

जब भी बाहर झांका

दुनिया हसीन दिखी

यह नही कि

ललचाया नही !

मन  दौड़ा ,

पर किसी  की    पुकार  पर,

लौट   आया 

प्रेम  क्या है  सोचा  नही

अनायास   मिला भी नही।

मिल   गया होता तो

क्या   परिणीति होती ।

रीति  रिवाज फ़र्ज़ की

वेदी  पर  चढ़  जाता ।

अच्छा  ही  हुआ  ,

नही  हुआ 

आधा  -अधूरा प्रेम ।

 

आलेख  व कविता - हरिशंकर शर्मा

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Harishankar Sharma State Level Accredited Journalist राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार , 31 वर्षों का कमिटेड पत्रकारिता का अनुभव . सतत समाचार, रिपोर्ट ,आलेख , कॉलम व साहित्यिक लेखन . सकारात्मक एवं उदेश्य्पूर्ण पत्रकारिता के लिए न्यूज़ पोर्टल "www. apni-baat.com " 5 दिसम्बर 2023 से प्रारम्भ . संपर्क apnibaat61@gmail.com "Harishankar sharma " state leval acridiated journalist residing at ujjain mp. .working since 31 years in journalism field . expert in interviews story , novel, poems and script writing . six books runing on Amazon kindle . Editor* news portal* www.apni-baat.com