श्याम रंग रंगा रे हर पल मेरा रे ......* फिल्म गीतकार योगेश ने हिंदी में कालजयी गीत लिखे
कृष्ण भक्ति के अनेकों गीत हैं जो मन को छू लेते हैं ।जिनमें सूरदास , मीराबाई के पद भारतीय जनमानस में रचे बसे है। एक फिल्म का गीत जो कान्हा पर लिखा गया है बार-बार आकर्षित करता है । बार-बार सुनने को मन करता है।

कृष्ण भक्ति के अनेकों गीत हैं जो मन को छू लेते हैं ।जिनमें सूरदास , मीराबाई के पद भारतीय जनमानस में रचे बसे है। एक फिल्म का गीत जो कान्हा पर लिखा गया है बार-बार आकर्षित करता है । बार-बार सुनने को मन करता है। अनेकों बार सुनने के बाद भी इस गीत की सुनने की चाह खत्म नहीं होती । फिल्म अपने पराये में संगीतकार भप्पी लाहिरी का संगीतबद्ध एवं गीतकार योगेश का लिखा गीत " श्याम रंग रंगा रे हर पल मेरा रे " एक अलग ही अंदाज में लिखा गया गीत है। इसका संगीत भी निश्चित रूप से भप्पी दा ने कुछ अलग हटकर ही बनाया है । येसुदास की आवाज और मृदंग बजाते हुए अमोल पालेकर इस भजन में अनुपम छटा बिखेरते हैं . मृदंग की ताल और ओ रे कान्हा , ओ रे कान्हा से शुरू होने वाला गीत अपने पहले अंतरे में ही आपको अपनी और खींच लेता है । योगेश ऐसे फिल्मी गीतकार थे जिनकी लिखे हुए गीत सीधे शब्दों में लिखे गए हैं , भारी-भरकम शब्दो की बजाय सरल हिंदी व्यक्ति के मन में सीधे प्रवेश कर जाती हैं । वे गीत में लिखते हैं " श्याम रंग रंगा रे , श्याम रंग रंगा रे ,मेरा मतवाला है मधुबन तेरा रे " । " जिसके रंग में रंगी मीरा, रंगी थी राधा रे ,उसी मनमोहन से मैंने बंधन बांधा रे। "
दूसरे अंतर में योगेश कहते हैं " मेरी सांसों के फूल खिले हैं तेरे ही लिए , जीवन है पूजा की थाली नैना है दीये " । " सूने जमुना के तट पर सुने पनघट आजा रे ओ कृष्ण कन्हया , नहीं चैन पड़े कान्हा तुझे देखे बिना नहीं चैन पड़े । " योगेश गीत के आखिर में लिखते हैं "कभी बने नटखट ,कभी हरे संकट , भक्तन के रखवेया भवसागर पार लगा दे मेरी नैया " । गीत के बोल और संगीत रूह में उतरता जाता है . आप खुद को कृष्ण से रूबरू होते महसूस कर सकते है । यही है गीत संगीत का जादू ।
हिंदी के गीत कारों में योगेश ऐसे गीतकार थे जिनका फिल्मी गीतों में योगदान सदैव याद किया जाना चाहिए । किया जाना इसलिए कि योगेश ने जितने अच्छे गीत लिखे , उनके जितने गीत मकबूल हुए , उतने योगेश प्रसिद्ध नहीं हो पाए । शायद ही कोई जानता हो कि आनंद फ़िल्म का गीत "जिंदगी कैसी है पहेली" या फिर फिल्म मंजिल में लिखा गीत "रिमझिम गिरे सावन ' योगेश का लिखा हुआ है । वे इतने शर्मीले व्यक्तित्व के थे कि अपना हक मांगने में भी संकोच करते थे । उन्होंने खुद एक जगह किस्सा सुनाया है कि ऋषिकेश मुखर्जी ने उनसे एक फ़िल्म का गीत लिखवाया और वह गीत प्रसिद्ध हो गया फ़िल्म हिट हो गई किंतु मुखर्जी साहब उस फिल्म में इस गीत का क्रेडिट योगेश को देना भूल गए । एक दिन उन्होंने योगेश से कहा कि फ़िल्म में नाम देना म भूल गया हूं अगली फिल्म में ध्यान रखेंगे , योगेश बस मुस्करा भर दिए । कल्पना करिए यदि आज किसी गीतकार नाम फ़िल्म में न जाए तो वह क्या रिएक्शन देगा । पर योगेश कुछ ऐसे ही थे ।
योगेश की जोड़ी सलिल चौधरी , बासु चटर्जी ,ऋषिकेश मुखर्जी से लेकर सचिन देव बर्मन और आर डी बर्मन से खूब जमी । सभी ने उनसे बेहतरीन ।गीत लिखवाए। उनके लिखे हुए इतने सुगठित और प्रभावशाली हैं कि आज भी चल रहे हैं । भले ही योगेश को लोग नहीं जानते हो । जरा एक बानगी देखिए योगेश के गीतों की ,सचिन देव बर्मन का संगीतबद्ध किया हुआ फिल्म मिली का गीत " बड़ी सूनी सूनी है जिंदगी ये जिंदगी या फिर " मैंने कहा फूलों से हंसो तो वे खिलखिलाकर हंस दिए " । फ़िल्म रजनीगंधा का गीत " कई बार यूं ही देखा है , मन की जो सीमा रेखा है " अब आप सोचिए कि फिल्मी गीत में कोई मन की सीमा रेखा शब्द का उपयोग कर सकता है उन्होंने किया और निर्देशक व संगीतकार ने इसे जस तस जाने दिया । रजनीगंधा फूल तुम्हारे के महके इस जीवन में भी कम नही है ।
योगेश ने जिस तरह से अपना जीवन सादगी से जिया उसी सादगी से वह इस वर्ष दुनिया छोड़कर चले भी गए । अपने पीछे छोड़ गए हैं विरासत में सैकड़ों गीत ( एक हजार से अधिक ) जो जब भी बजेंगे लोगों को मोहते रहेंगे । रजनीगन्धा के फूलों की तरह महकते रहेंगे ।जब जब सावन आएगा, जब जब झूम के बारिश होगी तब तब रिमझिम गिरे सावन का गीत बजेगा । गीत याद रहेंगे लेकिन शायद ही किसीको इस गीत के लेखक योगेश की याद आये ।
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