Today Politics has ruined sensitive Bengal संवेदनशील बंगाल को राजनीति ने आज कहाँ पंहुचा दिया
Sandeshkhali में महिलाओं पर हुए अत्याचार ने मध्यकाल की याद दिला दी. कभी Indian renaissance काल बंगाल में ही घटित हुआ। Raja Rammohan Roy .... Rabindra nath Tagore , जैसे व्यक्तियों ने नई दिशा दी
संवेदनशील बंगाल को राजनीति ने आज कहाँ पंहुचा दिया
आज के संदर्भ में यदि हम West bengal की राजनीतिक परिस्थितियों के बारे में सोचें तो पाते है कि जैसे उग्रता पूर्ण संघर्ष आज वहां हो रहे हैं उतने शायद कश्मीर को छोड़कर भारत के किसी भूभाग पर नहीं हो रहे होंगे । Sandeshkhali में महिलाओं पर हुए अत्याचार ने मध्यकाल की याद दिला दी . लंबे समय तक बंगाल में साम्यवादी सरकार रही जिन्होंने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए जिस तरह से चीन में Communist अपना शासन चला रहे हैं कुछ उसी तरह का ढांचा यहां विकसित किया और अपने विरोधियों को ठिकाने लगाकर 30 वर्षो अधिक शासन किया ।
Mamata Banerjee लम्बे संघर्ष के बाद सत्ता पर काबिज हुई . बाद के समय में लगा था कि बंगाल में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा । लेकिन वह अब दिख नहीं रहा है । वे भी साम्यवादी तोर तरीकों से सत्ता बचाए हुए है , वर्ग संघर्ष के साथ साथ फिरकापरस्ती भी शिखर पर है । सत्ता संघर्ष के नीचे दबी बंगाल की जनता आर्थिक विकास को लेकर परेशान होगी , वहां के लोग कितने कुंठित होंगे इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। विगत दिनों एक नेचरोपैथी सेंटर में बंगाली भद्र पुरुष के साथ दस दिन रहा ।उनके मुंह से सुनकर बंगाल की जमीनी हकीकत का पता लगा । मेरे मन में संजोकर रखे गए बंगाल और बांग्ला साहित्य की भाव प्रवणता पर आघात पंहुचा ।
बांग्ला में लिखे हुए साहित्य को पढ़ने में एक बात तो तय थी ही कि ये संवेदनाओं से भरे उपन्यास हुआ करते थे ।लेखक उसमें ऐसा भावपूर्ण चित्रण करते थे कि पढ़ने वाले की जान ही निकल जाए। कुछ ऐसा ही अनुभव बाउल गायकों और रविंद्र संगीत को सुनने पर होता है चाहे आपको बांग्ला भाषा आती हो या ना आती हो । बंगाली लोक संगीत आपको गंगा नदी के निर्मल जल की तरह बहा ले जाता है।
Indian renaissance काल बंगाल में ही घटित हुआ। Raja Rammohan Roy , Ishvarchand vidyasagar, Aurobindo Ghosh , Rabindra nath Tagore , जैसे व्यक्तियों ने इस देश के समाज को, शिक्षा को एक नई दिशा दी। सती प्रथा ,विधवा विवाह न करने देने जैसी कुरीतियों को रोकने के लिए सबसे पहली आवाज बंगाल से ही उठी।
साहित्यिक बंगाल को सुनना समझना एक अलग वस्तु है जबकि राजनीतिक रूप से बंगाल के बारे में विचार करना अलग । वर्ष 1757 में रॉबर्ट क्लाइव ने जब बंगाल (तब के बंगाल में अविभाजित बंगाल , बिहार और उड़ीसा शामिल था ) फतह किया और नवाब सिराजुद्दोला को हराया तो उसमें एक किरदार सामने आया मीरजाफर । जो बाद में जयचंद के साथ संयोजित हो गया। अंग्रेजों के प्रादुर्भाव ने सबसे पहले हिंदुस्तान में जमीदारी प्रथा बंगाल में ही शुरू की । जमीदारों के अत्याचारों के तले वर्षों तक भारत की आबादी रही और उनके शोषण का शिकार होती रही । अंग्रजो की शिक्षा नीति से बंगाल में ही पहलीबार भारत के शिक्षित मध्य वर्ग का उदय हुआ ।
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